Thursday 3 December 2020
Tuesday 17 November 2020
दो शब्द
वो जो कल तक हमें
'तुम' कहा करते थे
आज-कल 'आप' कहा करते हैं..
आप से तुम..
तुम से आप..
इन दो शब्दों के बीच के फासलें..
दिलों की दूरियां
और उनकी नज़दीकियों की कहानी
बयां किया करते हैं....।
Tuesday 27 October 2020
मौजूदगी
सांसों में
जिंदा होने का एहसास
भरती थी शायद...
मौजूदगी एक दूजें की...
बस इसीलिए
जरूरी है शायद...
आज भी हमें
इस जहां में..
मौजूदगी एक दूजें की...।
Saturday 24 October 2020
दो पल की मुलाकात
किसी रोज
किसी अजनबी से..
दो पल की मुलाकात भी
बेहद प्यारी होती है..
जानते है..
ना पहले कभी मिले
ना फिर कभी मिलेंगे..
फिर भी
उस पल की खूबसूरती
कई दिनों की रंगत बदल देती है....
कभी-कभी तो जिंदगी की दिशा भी...।
Friday 9 October 2020
स्वयं से इतर
जिसे भी तुम
स्वयं से इतर ना देख पाओ
बस समझ लेना
वहीं प्रेम का पात्र है
तुम्हारे जीवन में..
और जो स्वयं से
इतर ना देख पाए तुम्हें
वहीं शख़्स
तुम्हारी तलाश..
तुम किसी के हो जाओ
अंतस के हर कोने से
परख लेना उससे पहले
कि सामने भी ऐसी ही चाह
है कि नहीं..
सफ़र लंबा हो जाए
किसी के साथ अगर
तो फिर वापस लौटना
थोड़ा मुश्किल हो जाता है..
यादों के दामन को छिटकना
और आगे बढ़ना
थोड़ा उलझन-भरा हो जाता है..
सुकूं की तलाश में निकलें हो
अच्छी बात है
झोली में कुछ कंकर
आ ही जाएंगे
चाहे जितना सम्हलकर चले हो..
मगर झोली
कंकरों से ही आबाद ना हो जाए
इसका ख्याल रखना..
जो स्वयं से इतर
ना देख पाए तुम्हें
उस शख़्स की तलाश
जारी रखना..।
Sunday 4 October 2020
सागर का किनारा
सागर का किनारा हो,
और ढ़लते सूरज की खूबसूरती के साक्षी हम हो..
हाथों में हमारे जाम,
और गालों पर इन्द्रधनुष के रंग हो..
कांधे पर तुम्हारे मेरा सर हो,
और हमारी मुहब्बत के रंगों से सजी कविता
गुनगुनाती हुई उस पल वहां मैं हो..
और शामिल उस पल में हर वो बात हो,
जो बना दे हमें रूहों के साथी.. ताउम्र के लिए....।
Thursday 24 September 2020
पर्दा
मातृत्व मोहताज नहीं कोख का
हां मगर मोहताज है वो यहां
तुम्हारी सोच का...
तुम समझते हो.. जो जाया हो कोख का
वही कुलदीपक हो सकता है.. तुम्हारे वंश का..
स्त्री जो तुम्हारेेे सामने जिंदा खड़ी थी
उसका होना नगण्य
और बच्चें का ना होना.. सर्वस्व...कर दिया गया...
उसका सच नंगा खड़ा था
इसलिए जमाने के सामने.. ढिंढोरा पीट आए तुम
उसे छोड़ किसी और को ले आए तुम..
मगर बात जब तुम्हारी आई
तो छुपाना तुम्हें उचित लगा..
सरेआम तमाशा बने तुम्हारा
ये सोचकर ही सिहर गए तुम..
और निकाल लिया तुमने बीच का रास्ता
भेज दिया गया उसे.. अपनी झूठी इज्जत बचाने को
कभी किसी घर में देवर.. कहीं जेठ...
कहीं किसी दोस्त तो कभी किसी बाबा के पास..
बेपर्दा पुरुषों का इतिहास पर्दों में रहा यहां
और पर्देदार स्त्रियां..हमेशा बेपर्दा रही यहां......।
Thursday 17 September 2020
मृत रूहें
जीते कहां हैं हम
हमें तो रोज मरने की
कला सिखाई जाती है..
मौत बेचारी तो
बड़ा उपकार करती है
हम 'मृत रूहों' पर..
कि आजाद कर देती है हमें
'ज़िस्मों की कैद' से...।
Monday 17 August 2020
जिंदगी की दिशा
जिंदगी में हमें मिलें लोग
हमें मिली परिस्थितियाँ
या सुविधायें नहीं..
बल्कि इनसें कहीं ज्यादा...
इन सबकें प्रति
हमारा नजरिया..
हमारा दृष्टिकोण..
तय करता हैं.....
हमारी जिंदगी की दिशा...।
हमें मिली परिस्थितियाँ
या सुविधायें नहीं..
बल्कि इनसें कहीं ज्यादा...
इन सबकें प्रति
हमारा नजरिया..
हमारा दृष्टिकोण..
तय करता हैं.....
हमारी जिंदगी की दिशा...।
Tuesday 11 August 2020
Tuesday 4 August 2020
लम्बी और खुशनुमा जिंदगी
लम्बी और खुशनुमा जिंदगी
या तो उनको मिली यहां...
जिंदगी रही जिनकी
प्यार और परवाह वाले
लोगों के बीच....
या उन्हें जो
नीयत के साफ नहीं......।
Monday 3 August 2020
इतिहास के पन्नों में
प्रेम तो सिर्फ़ स्त्रियों ने ही किया
इस देश में.....
और इसके प्रमाण भी मौजूद रहे है
कि चिता पर बस 'सतियां' ही मिली...
इतिहास के पन्नों में..
या तो प्रेम में पूरी रही
सिर्फ स्त्रियां ही यहां....
या फिर मौजूद रहा ऐसा समाज
जहां स्त्रियों की हत्याएं की गई..।
Monday 27 July 2020
रेगिस्तान से ये समाज
रेगिस्तान से ये समाज
यहां गुलाब नहीं महका करते...
ये सरज़मीं तो बस
कैक्टसों के लिए ही अनुकूल है.....।
Friday 24 July 2020
हम ना हो
चाहें बन ना सके
किसी की मुस्कुराहटों की वजह हम..
मगर सीने में किसी के
दर्द की वजह.. हम ना हो.....
आंखों में किसी के
नूर की वजह हम हो ना हो...
मगर मासूम किन्हीं आंखों से
छलकते दर्द की वजह.. हम ना हो....
गुजर जाएं हमारे साथ से
किसी का वक़्त पल-भर में
ऐसे किसी के साथी हम हो ना हो..
मगर ठहर जाए किसी का वक़्त, बरसों वहीं..
ऐसे किन्हीं गुनाहों की वजह.. हम ना हो....
Thursday 23 July 2020
स्त्री
स्त्री....
असम्भव से सम्भव की यात्रा को
परिभाषित करता एक शब्द..
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद....।
असम्भव से सम्भव की यात्रा को
परिभाषित करता एक शब्द..
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद....।
Tuesday 21 July 2020
कूँची
कहाँ बदलता है
कुछ भी खुद-ब-खुद
ये हमी तो हैं
जो भर के मन की ताकत से
उठातें हैं जब हाथ अपनें..
तो बदल जाती है तस्वीर दुनिया की
पलट जाते हैं तख़्त बादशाहों तक के....
सही भी है
गर बिना कूँची उठायें
तस्वीर में रंगों के भर जाने का इंतजार हम करते रहें
तो तस्वीर हमेशा के लिए बेरंग ही रह जायेंगी
और जो गर उठा ली कूँची हमनें....
तो फिर तस्वीर का हर रंग
हमारें मनमाफिक होगा............।
कुछ भी खुद-ब-खुद
ये हमी तो हैं
जो भर के मन की ताकत से
उठातें हैं जब हाथ अपनें..
तो बदल जाती है तस्वीर दुनिया की
पलट जाते हैं तख़्त बादशाहों तक के....
सही भी है
गर बिना कूँची उठायें
तस्वीर में रंगों के भर जाने का इंतजार हम करते रहें
तो तस्वीर हमेशा के लिए बेरंग ही रह जायेंगी
और जो गर उठा ली कूँची हमनें....
तो फिर तस्वीर का हर रंग
हमारें मनमाफिक होगा............।
Sunday 19 July 2020
मेरा आकाश
खुदा हौसलों की उड़ान
मुझ बेपर इंसान में भर दे..
ताकि उड़ सकूूं
दूर कहीं आकाश में..
छू सकूं
अपने सपनों के आकाश को..
और भर सकूं
उसे अपनी बाँहों में..........।
मुझ बेपर इंसान में भर दे..
ताकि उड़ सकूूं
दूर कहीं आकाश में..
छू सकूं
अपने सपनों के आकाश को..
और भर सकूं
उसे अपनी बाँहों में..........।
Friday 17 July 2020
जिंदगी
साँसें आती जाती है
दिल भी धड़कता है..
बह रहा है,
इन रगों में लहू भी...
जीने के सभी इशारें मौजूद है,
बस, हम जिंदा ही नहीं...........।
दिल भी धड़कता है..
बह रहा है,
इन रगों में लहू भी...
जीने के सभी इशारें मौजूद है,
बस, हम जिंदा ही नहीं...........।
Thursday 9 July 2020
बसकन्या
आज एक बच्ची से मिलना हुआ
नाम था 'बसकन्या'...
मुझे सुनाई पड़ा 'विषकन्या'
तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ..
कि कोई अपनी बच्ची का नाम
'विषकन्या' कैसे रख सकता है भला..
'विषकन्या' कैसे रख सकता है भला..
मैंने फिर से पूछा...
तो बच्ची ने कहा
नहीं.. 'बसकन्या'...
अब मैं क्या कहूं आगे
भारतीय समाज के पुत्र-मोह की
जिंदा निशानी-सी 'बसकन्या'
आपके सामने है.....
और वक़्त के साथ वो बच्ची
हजारों सवालों से जूझने के लिए छोड़ दी जाएगी
कि " मेरे अस्तित्व से भी एतराज था
मेरे ही अपने परिवार और समाज को.."
बड़ा तन्हा महसूस करेगी उस वक़्त खुद को..
बड़ा तन्हा महसूस करेगी उस वक़्त खुद को..
तुम सब समझ भी नहीं सकते हो
की तुमने उसे 'बसकन्या' नाम ही नहीं
'एक लम्बी मानसिक लड़ाई' सौंप दी है..
तुम्हारी सभ्य सोच के साथ.....।
तुम्हारी सभ्य सोच के साथ.....।
Wednesday 8 July 2020
तुम्हारे(अपरिपक्व) सवालों पर...
जवाब तो तुम्हारे हर एक सवाल का दे सकती हूं मैं
मगर क्या रखते हो तुम भी उसी स्तर की परिपक्वता
जिस स्तर की समझ के साथ देखा है मैंने जीवन को...
जिस खुले दिमाग से देखने के बाद
जाना है मैंने जिंदगी को..
समझा है उसके मायनों को..
शायद नहीं...
क्योंकि तुम तो अभी ये तक नहीं समझ पाए
कि मनुष्य जाति स्त्री और पुरूष दोनों के होने से है
मगर एक को तो कोख में भी जगह देने से एतराज है तुम्हें..
तो क्या समझोगे मायने तुम जीवन के....
तुम सब लकीर के फकीर जो ठहरे..
कुदरत ने हम सबको अपना अलग दिमाग दिया
मगर तुम कभी भी सम्मान कर पाए कुदरत का..
नहीं ना..
अगर भेड़ चाल ही होती जीवन के लिए सही
तो कुछ ही बंदों को ना दिया होता कुदरत ने दिमाग ?
मगर तुम हो कि जंग लगा उसे शान से बैठे हो..
इसलिए अक्सर खामोश रहती हूं मैं तुहारे सवालों पर...
क्योंकि..
"परिपक्व जवाबों को अपरिपक्व समझ के साथ, तुम पचा न सकोगे..."
क्योंकि अभी ना जाने और कितना वक्त लोगे तुम सब
जीवन को उसके मायनों के साथ स्वीकारने में....
इसलिए अक्सर खामोश रहती हूं मैं
तुम्हारे (अपरिपक्व) सवालों पर.......।
मगर क्या रखते हो तुम भी उसी स्तर की परिपक्वता
जिस स्तर की समझ के साथ देखा है मैंने जीवन को...
जिस खुले दिमाग से देखने के बाद
जाना है मैंने जिंदगी को..
समझा है उसके मायनों को..
शायद नहीं...
क्योंकि तुम तो अभी ये तक नहीं समझ पाए
कि मनुष्य जाति स्त्री और पुरूष दोनों के होने से है
मगर एक को तो कोख में भी जगह देने से एतराज है तुम्हें..
तो क्या समझोगे मायने तुम जीवन के....
तुम सब लकीर के फकीर जो ठहरे..
कुदरत ने हम सबको अपना अलग दिमाग दिया
मगर तुम कभी भी सम्मान कर पाए कुदरत का..
नहीं ना..
अगर भेड़ चाल ही होती जीवन के लिए सही
तो कुछ ही बंदों को ना दिया होता कुदरत ने दिमाग ?
मगर तुम हो कि जंग लगा उसे शान से बैठे हो..
इसलिए अक्सर खामोश रहती हूं मैं तुहारे सवालों पर...
क्योंकि..
"परिपक्व जवाबों को अपरिपक्व समझ के साथ, तुम पचा न सकोगे..."
क्योंकि अभी ना जाने और कितना वक्त लोगे तुम सब
जीवन को उसके मायनों के साथ स्वीकारने में....
इसलिए अक्सर खामोश रहती हूं मैं
तुम्हारे (अपरिपक्व) सवालों पर.......।
Monday 29 June 2020
Sunday 28 June 2020
बोलो.. इतने झल्ले क्यूं हो तुम..
बोलो..
इतने झल्ले क्यूं हो तुम..
बस में चढ़ते ही लोग सीट ढूंढ़तें है..
और तुम हो कि..
मुझे ढूंढ़ते हो..
बोलो..
इतने झल्ले क्यूं हो तुम..
जब तक एक बार
नजरें मिल नहीं जाती हमारी...
नजरें मिल नहीं जाती हमारी...
तब तक सुकूं
गायब-सा क्यूं रहता है तुम्हारा..
गायब-सा क्यूं रहता है तुम्हारा..
बोलो..
इतने झल्ले क्यूं हो तुम......।
इतने झल्ले क्यूं हो तुम......।
Tuesday 23 June 2020
जाति और धर्म के नाम पर
जाति और धर्म के नाम पर
कितने ही योग्य लोगों को..
कितने ही योग्य लोगों को..
बांध दिया जाता है
अयोग्य लोगों के पल्लें...
और नष्ट हो जाती है एक दिन
उनके भीतर की सारी योग्यता..
उन अयोग्य साथियों के संग
सिर पचाते-पचाते..
सिर पचाते-पचाते..
जो कभी बहा करते थे
नदियों की तरह..
सूख जाती है..
नदियों की तरह..
सूख जाती है..
उनके भीतर की नदी
और उसका कलनाद..
और उसका कलनाद..
और बचते है तो बस
सूखी नदी के से अवशेष..
सूखी नदी के से अवशेष..
कितना भारी नुकसान करते है हम
देश और समाज का
देश और समाज का
जाति और धर्म के नाम पर....।
साथ की पूर्णता
दो अधूरी-सी रूहें
साथ में इस कदर पूरी-सी
कि रह नहीं सकती एक-दूजें से अलग..
और साथ की पूर्णता
ना जाने किस तरह से..
भर देती है उनमें इतनी ताकत
कि लड़ जाते है वो पूरी दुनिया से..
एक-दूजें के साथ के लिए........।
Monday 22 June 2020
मोहब्बत
'छल' और 'कपट' से भरे लोग
कहाँ कर पाते हैं
किसी से भी 'मोहब्बत'....
क्योंकि चाहिए होती है
इसके लिए तो
"बच्चों-सी मासूमियत
और उनसा पाक-साफ दिल.......।"
कहाँ कर पाते हैं
किसी से भी 'मोहब्बत'....
क्योंकि चाहिए होती है
इसके लिए तो
"बच्चों-सी मासूमियत
और उनसा पाक-साफ दिल.......।"
Sunday 21 June 2020
जायज़ प्रेम
दो लोगों के भीतर
जो प्रेम स्वत: उत्पन होता है..
उस जायज़ प्रेम को
नाजायज़ ठहरा देते है हम...
और दूसरी तरफ....
मजबूर कर देते है दो अजनबियों को
जबरदस्ती एक दूसरे के प्रति
झूठा प्रेम प्रदर्शित करने को..
और ये जायज़....
नाजायज़ को जायज़
और जायज़ को नाजायज़
ठहराते आ रहे है हम..सदियों से....।
बोनसाई
एक आंगन में
दो पौधें उग आए..
एक को
बिना किसी रोक-टोक के
बढ़ने दिया गया..
और दूसरे की डालियां
बढ़ती भी नहीं थी
कि काट दी जाती थी..
एक विशाल वृक्ष बन गया
और दूसरा बोनसाई...
हम लड़कियों की तरह.....।
'रिश्तों की दुनिया'
रत्ती-भर भी फर्क नहीं पड़ता
'रिश्तों की दुनिया' में.. इस बात से....
कि उन्हें संवारनें.. उन्हें सम्भालनें..
या उन्हें बचाने के लिए
आप कहां तक गये....
आपने खुद को कहां तक झोंक दिया....
गर वाकई फर्क पड़ता है
यहां किसी बात से..
तो वो बस इतनी-सी है...
कि सामने वाले ने क्या सीखा था...
'कृतज्ञ' होना..
या फिर 'कृतघ्न'........।
'रिश्तों की दुनिया' में.. इस बात से....
कि उन्हें संवारनें.. उन्हें सम्भालनें..
या उन्हें बचाने के लिए
आप कहां तक गये....
आपने खुद को कहां तक झोंक दिया....
गर वाकई फर्क पड़ता है
यहां किसी बात से..
तो वो बस इतनी-सी है...
कि सामने वाले ने क्या सीखा था...
'कृतज्ञ' होना..
या फिर 'कृतघ्न'........।
Friday 19 June 2020
छूकर कोई मुझे (बाल यौन-हिंसा पर कविता)
छूकर कोई मुझे
मुझसे ही दूर कर रहा है..
मेरे बचपन
मेरी मासूमियत को ही नहीं...
मेरे बचपन
मेरी मासूमियत को ही नहीं...
मेरे पूरे जीवन-उत्सव को ही कोई
बहुत वीरान कर रहा है.....
बहुत वीरान कर रहा है.....
तुम सब को फुर्सत नहीं शायद
ये देखने या समझने की..
कि कोई बच्चा क्यूं
कि कोई बच्चा क्यूं
आज-कल गुमसुम हो रहा है...
शायद व्यस्त रहते हो तुम
किन्हीं ज्यादा ज़रूरी बातों में...
किन्हीं ज्यादा ज़रूरी बातों में...
कि किसकी बहू ने घूंघट किया
और किसकी ने नहीं..
या इतने नादान हो
और किसकी ने नहीं..
या इतने नादान हो
कि दिखती ही नहीं उदासी
किसी मासूम की..
या इतने लापरवाह
कि फर्क ही नहीं पड़ता
किसी मासूम जिंदगी से...
या फिर समझते ही नहीं तुम
हमारे लिए अपनी कोई भी जिम्मेदारी...
शायद इसीलिए.. हर रोज कहीं ना कहीं
छूकर कोई मुझे
मुझसे ही दूर कर रहा है.....
किसी मासूम की..
या इतने लापरवाह
कि फर्क ही नहीं पड़ता
किसी मासूम जिंदगी से...
या फिर समझते ही नहीं तुम
हमारे लिए अपनी कोई भी जिम्मेदारी...
शायद इसीलिए.. हर रोज कहीं ना कहीं
छूकर कोई मुझे
मुझसे ही दूर कर रहा है.....
मेरे बचपन
मेरी मासूमियत को ही नहीं...
मेरी मासूमियत को ही नहीं...
मेरे पूरे जीवन-उत्सव को ही कोई
बहुत वीरान कर रहा है.....।
बहुत वीरान कर रहा है.....।
Wednesday 17 June 2020
बॉडी शेमिंग
कौन आता है इस दुनिया में
अपने साथ..अपने ही लिए
'नकारात्मकता' लेकर...?
किसी ने कहा "इसका रंग देखो"
किसी ने कहा "ये कितना छोटा है"
किसी ने कहा "इसके बाल कितने अजीब है"
तो किसी ने कह दिया "ये कितनी मोटी है"
तो किसी ने ये कि "ये कितना पतला है"
तो किसी ने ये कि "ये कितना पतला है"
सब कह कर चले गए मगर..
तुम्हें उनकी बातें बार-बार याद आती रही
और अपने ही लिए.. 'नकारात्मकता' से भरते गए तुम..
और अपने ही लिए.. 'नकारात्मकता' से भरते गए तुम..
क्योंकि जिन्होंने कहा वो तुमसे बड़े थे..
तुम्हारा उन पर भरोसा था..
इसलिए उनकी बातें तुम्हें सच्ची लगी
और तुम फंस गए...
फिर भर उठा तुम्हारा दिल अपने ही लिए.. नापसंदगी से..
आईने में जब भी खुद को देखा
तो किसी दिन कानों में पड़ी..
उन बातों का याद आ जाना
उन बातों का याद आ जाना
तुम्हें खुद से थोड़ा और दूर कर गया...
फिर बार-बार शीशें में देखना
और नापसंद करना खुद को
और नापसंद करना खुद को
आदत हो गई तुम्हारी...
मगर ये चल नहीं सकता ना
अपने ही लिए 'नकारात्मक' हो जाना तुम्हारा..
पहले खुद को नापसंद करना
फिर वापस पसंद करना
इस लम्बी यात्रा में क्यों पड़ना?
जब कोई कहे कि "तुम सुंदर नहीं हो"
तो इसे अपने भीतर जाने ही मत देना
क्यूंकि जो तुम हो.. बस वो हो..
फर्क नहीं पड़ेगा..
कि तुम्हारी काया.. तुम्हारे बालों का रंग क्या है..?
मगर फर्क पड़ेगा
तुम्हारे दिल में तुम्हारे लिए
'स्वीकार्यता' का रंग कितना है..
तुम्हारे दिल में तुम्हारे लिए
'स्वीकार्यता' का रंग कितना है..
'बॉडी शेमिग' जिसकी भी वजह से
तुम्हारी लाइफ भी आईं हो..
कीमत सिर्फ तुम चुकाओगे
तो क्यों चुकानी?
बड़े हर बार सही ही बोलें.. ये जरूरी तो नहीं..
और जो तुम्हें खुद को भी नकारना सिखाएं
तुम खुद ही तय कर लेना.. उनकी समझ..
और उन पर अपना भरोसा..
और उन पर अपना भरोसा..
तुम जैसे भी हो रंग-रूप में.. दिखने में..
बस हो..
जरूरत है सिर्फ खुद को स्वीकार करने की
खुद को ये कहने की
कि "तुम दुनियां के सबसे प्यारे बच्चे हो"
कि "तुम दुनियां के सबसे प्यारे बच्चे हो"
फिर खुद की इस 'स्वीकार्यता' के बाद
आइनें में तुम्हारे चेहरे..
तुम्हारी आंखों की चमक..
आइनें में तुम्हारे चेहरे..
तुम्हारी आंखों की चमक..
"तुम्हें खुद बता देगी.. कि तुम क्या हो"
और तुम्हारे साथ-साथ..बाकियों को भी....।
Monday 15 June 2020
गलतफहमियां
दरमियां किन्हीं दो अपनों के
ताउम्र के फासलें कर जाती है..
कुछ इस कदर..
गलतफहमियां सच को झूठ
और झूठ को सच कर जाती है....।
धरोहर
कुछ लोगों के साथ गुजारा हुआ
हर लम्हा...
जीवन में 'धरोहर' की तरह होता है,
जिसे सहेजकर रखना चाहते हैं हम
दिल के भीतर कहीं,
हमेशा के लिये.....।
जीवन में 'धरोहर' की तरह होता है,
जिसे सहेजकर रखना चाहते हैं हम
दिल के भीतर कहीं,
हमेशा के लिये.....।
Sunday 14 June 2020
मनोविज्ञान कहता है कि "प्रत्येक आत्महत्या 'सामाजिक- हत्या' होती है... ये किसी भी समाज की भीतरी सड़न और खोखलेपन की और साफ-साफ इशारा करती है...।"
इस तरह आत्महत्या जैसें किसी शब्द का कोई अस्तित्व ही नहीं है...ये तो बस एक निर्दोष और दुनिया से जा चुके इंसान को कठघरे में खड़ा करके.. हम सबका खुद को बरी कर लेने को इज़ाद किया गया एक झूठा शब्द-भर है....( RIP सुशांत सिंह राजपूत को समर्पित)
कोशिशें
खोलती हैं,
नाकामियों से कामयाबियों के
कुछ अनजाने से रास्तें कोशिशें...
कर देती हैं,
खड़ा लाकर हमें
हमारी मंजिलों के सामने कोशिशें....।
बना देती हैैं,
हमारी पगडंडियों को
दुनिया के रास्तें, कोशिशें...
थमा देती हैं,
घनघोर अंधेरों में भी
एक छोर रोशनी का कोशिशें....।
भर देती हैं,
जिंदगी के दामन में
फिर से खुशियों के रंग, कोशिशें...
मिला देती हैं,
जो गर चाहो तो
खुद हमीं से हमें..कोशिशें......।
नाकामियों से कामयाबियों के
कुछ अनजाने से रास्तें कोशिशें...
कर देती हैं,
खड़ा लाकर हमें
हमारी मंजिलों के सामने कोशिशें....।
बना देती हैैं,
हमारी पगडंडियों को
दुनिया के रास्तें, कोशिशें...
थमा देती हैं,
घनघोर अंधेरों में भी
एक छोर रोशनी का कोशिशें....।
भर देती हैं,
जिंदगी के दामन में
फिर से खुशियों के रंग, कोशिशें...
मिला देती हैं,
जो गर चाहो तो
खुद हमीं से हमें..कोशिशें......।
Wednesday 10 June 2020
जुगनुओं से भरी रात से..
नज़रों में
ठहर जाने वाली..
जुगनुओं से भरी
जुगनुओं से भरी
रात से.....
तुम मुझसे
तुम मुझसे
जब भी मिलें हो..
भर गए हो.....
मेरे अस्तित्व के
मेरे अस्तित्व के
हर कोनें को..
'संपूर्णता' से....।
जिंदगी और हमारा सामाजिक ढांचा
हमारी ज़िंदगी हमारे चुनावों पर निर्भर करती हैं
और हमारे चुनाव,
हमारे सामर्थ्य पर...
हमारा सामर्थ्य हमारी परवरिश पर
और हमारी परवरिश,
हमारे सामाजिक ढांचें पर...
और हमारा सामाजिक ढांचा.......
मनोवैज्ञानिक रूप से इस कदर समृद्ध
जो देता है आधी आबादी को तो इतनी आज़ादी
कि वो उच्छृंखल हो जाये,
और आधी का.. इतना दमन
कि वो कुंठित हो जाये...
और जीवन ना तो उच्छृंखल में घटता है, ना कुंठित में
क्योंकि उच्छृंखलता सिर्फ विध्वंस मचाती है
और विध्वंस और जीवन तो इक- दूजे के विलोम ठहरे..
कुंठित में तो जीवन का सवाल ही कहां ?
तो फिर हमारे.. इस सभ्य सामाजिक ढांचे में
आखिर जीवन घटता कहां है?
और हमारे चुनाव,
हमारे सामर्थ्य पर...
हमारा सामर्थ्य हमारी परवरिश पर
और हमारी परवरिश,
हमारे सामाजिक ढांचें पर...
और हमारा सामाजिक ढांचा.......
मनोवैज्ञानिक रूप से इस कदर समृद्ध
जो देता है आधी आबादी को तो इतनी आज़ादी
कि वो उच्छृंखल हो जाये,
और आधी का.. इतना दमन
कि वो कुंठित हो जाये...
और जीवन ना तो उच्छृंखल में घटता है, ना कुंठित में
क्योंकि उच्छृंखलता सिर्फ विध्वंस मचाती है
और विध्वंस और जीवन तो इक- दूजे के विलोम ठहरे..
कुंठित में तो जीवन का सवाल ही कहां ?
तो फिर हमारे.. इस सभ्य सामाजिक ढांचे में
आखिर जीवन घटता कहां है?
Sunday 7 June 2020
इश्क़ हक़ीक़ी
इश्क़ मजाज़ी से
इश्क़ हक़ीक़ी तक के रास्तें ही
कहलाते है जिंदगी..
मगर समझ नहीं यहां
नादां इसां को..
इश्क़ मजाज़ी तक की..
तो कहां समझे वो रूहानियत
इश्क़ हक़ीक़ी की...।
असीम संभावनाएं
हर वो बच्चा
जो इस दुनिया में आता है..
भरा होता है वो
असीम संभावनाओं से..
मगर सीमित कर देते हैं
हम उन मासूमों को..
ढ़ाल देते है उन्हें
एक निश्चित सांचे/ढांचे में..
और सीखा देते है उन्हें
श़क करना..
अपनी ही 'असीम संभावनाओं' पर...।
Saturday 6 June 2020
ख़ामोशी
ख़ामोशी भी सुनने का
जो शख़्स हुनर रखते हो..
अनसुने कर दिए जाते हो
जब उनके शब्द भी..
घटती है फिर जो खामोशी
जीवन के हर पहलू पर..
शब्दों के भी दायरे से
बाहर हो जाता है.. फिर..
शब्दों के भी दायरे से
बाहर हो जाता है.. फिर..
बयां कर पाना उसे....।
मानव सभ्यता के किस छोर पर हम?
बंटा पड़ा है सम्पूर्ण विश्व,
स्त्री-पुरुष के खेमों में..
और पीछे,
कहीं बहुत पीछे......
छूट गए वो साथी,
गढ़ा था कुदरत ने जिन्हें....
एक-दूजे के सुकूं,
एक-दूजे के साथ के लिए....।
और पीछे,
कहीं बहुत पीछे......
छूट गए वो साथी,
गढ़ा था कुदरत ने जिन्हें....
एक-दूजे के सुकूं,
एक-दूजे के साथ के लिए....।
Friday 5 June 2020
जड़ता
चीजों को वैसे देखना
वैसे समझना.. वैसे महसूस करना
जैसी कि वो हैं..
जैसे कुदरत ने उन्हें बनाया है..
दूसरी तरफ समाज के चश्में..
उसके नज़रिए से देखना
दोनों में काफी फर्क होता हैं..
यही फर्क देखने की ताकत
हमें जड़ से चेतन करती है..
आंखें मूंदकर बिना सत्य को
तर्क की कसौटी पर कसे
स्वीकार कर लेना
क्योंकि वह चला आ रहा है.. बरसों से
जड़ता है......
एक लम्बी-चौड़ी फौज तैयार की जाती है
सामाजीकरण के नाम पर
जड़ बुद्धि लोगों की..
ताकि वो कभी खड़ें ना हो सके
व्यवस्था के ख़िलाफ़...
सामाजीकरण के नाम पर
इंसान सरीखे से..
रिमोट से संचालित लोग बनाए जाते है
जो ना तो अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते है
और ना अपनी मानवता का...
और जब अपनी प्रबल चेतना के बल पर
देख पाते है कुछ लोग
वो गहरा फर्क साफ-साफ..
जो कुदरत और सामाजीकरण के बीच
इतना गहरा हो चुका है
कि मनुष्य बिल्कुल भिन्न हो चुका है
अपने कुदरती रूप से..
तो खड़ी हो जाती है
पूरी व्यवस्था.. उन कुछ लोगों के ख़िलाफ़
जो जान चुके है मायने इंसान होने के.. चेतन होने के...
और विडम्बना.. कि ख़िलाफ़ उनके हम भी..।
वैसे समझना.. वैसे महसूस करना
जैसी कि वो हैं..
जैसे कुदरत ने उन्हें बनाया है..
दूसरी तरफ समाज के चश्में..
उसके नज़रिए से देखना
दोनों में काफी फर्क होता हैं..
यही फर्क देखने की ताकत
हमें जड़ से चेतन करती है..
आंखें मूंदकर बिना सत्य को
तर्क की कसौटी पर कसे
स्वीकार कर लेना
क्योंकि वह चला आ रहा है.. बरसों से
जड़ता है......
एक लम्बी-चौड़ी फौज तैयार की जाती है
सामाजीकरण के नाम पर
जड़ बुद्धि लोगों की..
ताकि वो कभी खड़ें ना हो सके
व्यवस्था के ख़िलाफ़...
सामाजीकरण के नाम पर
इंसान सरीखे से..
रिमोट से संचालित लोग बनाए जाते है
जो ना तो अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते है
और ना अपनी मानवता का...
और जब अपनी प्रबल चेतना के बल पर
देख पाते है कुछ लोग
वो गहरा फर्क साफ-साफ..
जो कुदरत और सामाजीकरण के बीच
इतना गहरा हो चुका है
कि मनुष्य बिल्कुल भिन्न हो चुका है
अपने कुदरती रूप से..
तो खड़ी हो जाती है
पूरी व्यवस्था.. उन कुछ लोगों के ख़िलाफ़
जो जान चुके है मायने इंसान होने के.. चेतन होने के...
और विडम्बना.. कि ख़िलाफ़ उनके हम भी..।
Wednesday 3 June 2020
उम्मीदें और शिकायतें
जो अपने होंगे
जिनके लिए
जिनके लिए
दिल में मोहब्बत होगी..
ज़ायज़ हैैं कि
ज़ायज़ हैैं कि
उनसें कुछ उम्मीदें
तो कभी
तो कभी
कुछ शिकायतें भी होगी..
गर ख़त्म उम्मीदें...
गर ख़त्म शिकायतें...
तो समझ जाओ..
गर ख़त्म उम्मीदें...
गर ख़त्म शिकायतें...
तो समझ जाओ..
कि हो गई दफ़्न कहीं इस दिल में..
उम्मीदों और शिकायतों संग..मोहब्बत भी..।
Monday 1 June 2020
कविता क्या है?
कविता..
अपने दर्द
अपने गुस्से
अपने आक्रोश
अपने भीतर की बैचेनी को
शब्द देना है.....
कविता..
रूह के सुकूं
रूह की खुशी
रूह के ख़ूबसूरत भावों
अपने भीतर के प्रेम को
शब्द देना है.....
कविता..
हृदय के गर्भ में
पल रहे मासूम शिशु को
शब्दों और
लेखनी के जरिए
जन्म देना है.....
कविता..
दर्द, खुशी
आक्रोश, प्रेम
रूह के हर एक भाव को..
एक ख़ूबसूरत
अभिव्यक्ति देना है....।
अपने दर्द
अपने गुस्से
अपने आक्रोश
अपने भीतर की बैचेनी को
शब्द देना है.....
कविता..
रूह के सुकूं
रूह की खुशी
रूह के ख़ूबसूरत भावों
अपने भीतर के प्रेम को
शब्द देना है.....
कविता..
हृदय के गर्भ में
पल रहे मासूम शिशु को
शब्दों और
लेखनी के जरिए
जन्म देना है.....
कविता..
दर्द, खुशी
आक्रोश, प्रेम
रूह के हर एक भाव को..
एक ख़ूबसूरत
अभिव्यक्ति देना है....।
तेरे आगोश में
तेरे आगोश में
महफूज़-सी मैं...
मेरे दामन में
मेरे दामन में
मासूम-बच्चे-सा तू...
तेरे इश्क़ में
तेरे इश्क़ में
अब मैं भी...
मेरे इश्क़ में
अब तू भी...।
Sunday 31 May 2020
बीमारी...
ठहरा दिया जाता है अक्सर दोषी,
अपने साथ घटे हादसें के लिए
उसी स्त्री को,
भोगी है जिसने नर्क-सी यातना,
देखा है जिसने अपनी ही आंखों सें,
नोंचते हुए अपने जिस्म को भेड़ियों द्वारा।
रुह काँप जाती है
जिस दरिंदगी की दास्तां सुन कर ही,
ठहरा दी जाती है दोषी
उस दरिंदगी के लिए,
वही स्त्री, उसका पहनावा
और उसका चालचलन।
चलो एक बार की मान लेते है,
कि किसी स्त्री के शरीर पर पहने गये कपड़ें,
उसका चालचलन, निमंत्रण देते है
किसी पुरुष को बलात्कार के लिए,
तो शायद दिया होगा
कुछ ऐसा ही आमंत्रण,
6 माह की दुधमुंही बच्ची ने भी।
शायद किया होगा कुछ इसी तरह आमंत्रित
बलात्कारियों को,
60-70 साल की बुजुर्ग महिला ने भी,
अपने पहनावें, अपनें चालचलन से।
तभी तो ना ख्याल किया गया
मासूम बचपन का,
और ना मां समान अधेड़ उम्र की,
औरत के बुढ़ापे का।
बीमारी कहीं और होती है
और इलाज कहीं और ही चलता रहता है,
यही तो करते है हम,
हर बार औरतों को
इन हादसों के लिए जिम्मेदार ठहरा कर,
हर बार उन्हें ही नसीहतें देकर,
तो फिर बीमारी के ठीक होने की उम्मीद बेमानी हैं..।
अपने साथ घटे हादसें के लिए
उसी स्त्री को,
भोगी है जिसने नर्क-सी यातना,
देखा है जिसने अपनी ही आंखों सें,
नोंचते हुए अपने जिस्म को भेड़ियों द्वारा।
रुह काँप जाती है
जिस दरिंदगी की दास्तां सुन कर ही,
ठहरा दी जाती है दोषी
उस दरिंदगी के लिए,
वही स्त्री, उसका पहनावा
और उसका चालचलन।
चलो एक बार की मान लेते है,
कि किसी स्त्री के शरीर पर पहने गये कपड़ें,
उसका चालचलन, निमंत्रण देते है
किसी पुरुष को बलात्कार के लिए,
तो शायद दिया होगा
कुछ ऐसा ही आमंत्रण,
6 माह की दुधमुंही बच्ची ने भी।
शायद किया होगा कुछ इसी तरह आमंत्रित
बलात्कारियों को,
60-70 साल की बुजुर्ग महिला ने भी,
अपने पहनावें, अपनें चालचलन से।
तभी तो ना ख्याल किया गया
मासूम बचपन का,
और ना मां समान अधेड़ उम्र की,
औरत के बुढ़ापे का।
बीमारी कहीं और होती है
और इलाज कहीं और ही चलता रहता है,
यही तो करते है हम,
हर बार औरतों को
इन हादसों के लिए जिम्मेदार ठहरा कर,
हर बार उन्हें ही नसीहतें देकर,
तो फिर बीमारी के ठीक होने की उम्मीद बेमानी हैं..।
Tuesday 26 May 2020
मैं भी रूह...तू भी रूह...
मैं भी रूह...
तू भी रूह...
औरत और मर्द तो
ये ज़िस्म हुए....
मगर ना जाने क्यूं ,
ढूंढकर ज़िस्म पर
औरत के निशां...
एक रूह,
दूजी रूह के
दर्द की वजह हुए....
मैं भी रूह...
तू भी रूह...
औरत और मर्द तो
ये ज़िस्म हुए....।
तू भी रूह...
औरत और मर्द तो
ये ज़िस्म हुए....
मगर ना जाने क्यूं ,
ढूंढकर ज़िस्म पर
औरत के निशां...
एक रूह,
दूजी रूह के
दर्द की वजह हुए....
मैं भी रूह...
तू भी रूह...
औरत और मर्द तो
ये ज़िस्म हुए....।
Sunday 24 May 2020
दुनिया अलग-अलग यहां सबकी..
जीवन एक,
अंतिम सत्य भी एक ही..
मगर जीवन-पथ अलग-अलग सबका..।
यात्रा अलग,
और रास्तें..
अलग-अलग सबके।
सपनें अलग,
और उन्हें पाने की..
दौड़ अलग-अलग सबकी।
अनुभव अलग,
और अनुभूतियां..
अलग-अलग सबकी।
संसार एक ही,
मगर दुनिया..
अलग-अलग यहां सबकी......।
अंतिम सत्य भी एक ही..
मगर जीवन-पथ अलग-अलग सबका..।
यात्रा अलग,
और रास्तें..
अलग-अलग सबके।
सपनें अलग,
और उन्हें पाने की..
दौड़ अलग-अलग सबकी।
अनुभव अलग,
और अनुभूतियां..
अलग-अलग सबकी।
संसार एक ही,
मगर दुनिया..
अलग-अलग यहां सबकी......।
Saturday 23 May 2020
आत्महत्या (सामाजिक-हत्या)
'आत्महत्या' क्षणिक आवेग नहीं
घुटन है, एक लम्बे-चौडे़ वक्त की..
कोशिश है, सामने खडी़
बद्शक्ल जिंदगी से आजादी की..।
कहानी है शायद उस वक्त की
जब स्वीकार नहीं पाता होगा कोई शख़्स
सामने खडी़ उस बद्सूरत जिंदगी को
जिसकी खूबसूरती के सपनें उसने सजाये थे..।
उठ जाता होगा विश्वास ,
जब हर रिश्तें से...
छूट जाता होगा मोह,
जब अपने से जुडे़ हर शख़्स से...
और जब नजर आता होगा हर तरफ
सिर्फ अँधेरा,
अविश्वास,
नफरत,
धोखें और चालबाजियाँ
और मुश्किल हो जाता होगा जब
इन सबसे उपजी घुटन और दर्द को बर्दाश्त कर पाना..
और जब लाख कोशिशों के बाद भी
नजर ना आती होगी एक किरण रोशनी की..
शायद तभी, खुद की दर्द से तड़पती
रूह के सुकूं के लिए
खुद और दुनिया से बेहद प्रेम करने वाला एक शख़्स,
चुन लेता होगा वो राह..
दुनिया जिसे,
'आत्महत्या' कहती है........
ना जाने कितने हाथ रंगें होंगे
उस एक मासूम के खून में..
मगर कठघरे में खडा़.. सिर्फ वही मिलेगा......।
घुटन है, एक लम्बे-चौडे़ वक्त की..
कोशिश है, सामने खडी़
बद्शक्ल जिंदगी से आजादी की..।
कहानी है शायद उस वक्त की
जब स्वीकार नहीं पाता होगा कोई शख़्स
सामने खडी़ उस बद्सूरत जिंदगी को
जिसकी खूबसूरती के सपनें उसने सजाये थे..।
उठ जाता होगा विश्वास ,
जब हर रिश्तें से...
छूट जाता होगा मोह,
जब अपने से जुडे़ हर शख़्स से...
और जब नजर आता होगा हर तरफ
सिर्फ अँधेरा,
अविश्वास,
नफरत,
धोखें और चालबाजियाँ
और मुश्किल हो जाता होगा जब
इन सबसे उपजी घुटन और दर्द को बर्दाश्त कर पाना..
और जब लाख कोशिशों के बाद भी
नजर ना आती होगी एक किरण रोशनी की..
शायद तभी, खुद की दर्द से तड़पती
रूह के सुकूं के लिए
खुद और दुनिया से बेहद प्रेम करने वाला एक शख़्स,
चुन लेता होगा वो राह..
दुनिया जिसे,
'आत्महत्या' कहती है........
ना जाने कितने हाथ रंगें होंगे
उस एक मासूम के खून में..
मगर कठघरे में खडा़.. सिर्फ वही मिलेगा......।
Thursday 21 May 2020
अनगिनत कहानियां..
ना राधा ने,
ना मीरां ने,
ना सीता ना,
और ना ही द्रौपदी ने,
स्वयं चुनी थी अपनी तबाहियां...
वैसे ही अनवरत जारी है, आज भी..
स्त्री के जीवन में..
तबाहियों की अनगिनत कहानियां....।
ना मीरां ने,
ना सीता ना,
और ना ही द्रौपदी ने,
स्वयं चुनी थी अपनी तबाहियां...
वैसे ही अनवरत जारी है, आज भी..
स्त्री के जीवन में..
तबाहियों की अनगिनत कहानियां....।
Wednesday 20 May 2020
तेजाब
तेजाब सिर्फ, जिस्म़ को नही गलाता
गल जाती है संग उसके, उस शख्स की रुह भी..
चेहरे से गलके, टपकते माँस संग
टपक जाता है, उसके मन का विश्वास भी।
तेजाब सिर्फ, जिस्म़ को नही गलाता
गल जाते है संग उसके, उस शख्स के सपने भी..
चेहरे से गलके, टपकते माँस संग
टपक जाता है, हर किसी का इंसानियत से विश्वास भी।
तेजाब सिर्फ, जिस्म़ को नही गलाता
गल जाती है संग उसके, उस शख्स की जिंदगी भी
चेहरे से गलके, टपकते माँस संग
टपक जाते है, हमारे सभ्य होने के सभी दावे भी।
गल जाती है संग उसके, उस शख्स की रुह भी..
चेहरे से गलके, टपकते माँस संग
टपक जाता है, उसके मन का विश्वास भी।
तेजाब सिर्फ, जिस्म़ को नही गलाता
गल जाते है संग उसके, उस शख्स के सपने भी..
चेहरे से गलके, टपकते माँस संग
टपक जाता है, हर किसी का इंसानियत से विश्वास भी।
तेजाब सिर्फ, जिस्म़ को नही गलाता
गल जाती है संग उसके, उस शख्स की जिंदगी भी
चेहरे से गलके, टपकते माँस संग
टपक जाते है, हमारे सभ्य होने के सभी दावे भी।
Tuesday 19 May 2020
इस रूह को...
पहली बार सुनी हो
जैसे किसी झरने की कलकल..
और कानों ने कुछ अमृत-सा पी लिया हो..
तुम्हारी आवाज इन कानों में..
हर बार जैसे..
कुछ ऐसे ही घुली हो....।
ढ़लते सूरज और उसकी लालिमा को
बस जैसे देखते ही रहते है हम
उसके छिप जाने तक..
वैसे ही एक-टक..
ओझल ना होने तक..
देखा है मैंने.. तेरे अक्स को...।
बारिश की बूंदें
अगर भिगोती सिर्फ इस तन को
तो किसको याद रहती वो भला..
मगर उनकी ही तरह
भिगोता रहा है..
तू भी.. इस रूह को....।
-
जैसे किसी झरने की कलकल..
और कानों ने कुछ अमृत-सा पी लिया हो..
तुम्हारी आवाज इन कानों में..
हर बार जैसे..
कुछ ऐसे ही घुली हो....।
ढ़लते सूरज और उसकी लालिमा को
बस जैसे देखते ही रहते है हम
उसके छिप जाने तक..
वैसे ही एक-टक..
ओझल ना होने तक..
देखा है मैंने.. तेरे अक्स को...।
बारिश की बूंदें
अगर भिगोती सिर्फ इस तन को
तो किसको याद रहती वो भला..
मगर उनकी ही तरह
भिगोता रहा है..
तू भी.. इस रूह को....।
-
Monday 18 May 2020
वहशीयत...
तराजू के किन्हीं
दो पलड़ों की तरह...
रखी होती हैं
एक तरफ,
किसी की पूरी जिंदगी...
और दूसरी तरफ,
तुम्हारा दो पल का मजा...
और चुन लेते हो तुम,
वो वहशीयत- भरा
दो पल का मजा...
और गिरा देते हो..
'जिंदगी की कीमत।'
(RIP अरुणा शानबाग को समर्पित)
दो पलड़ों की तरह...
रखी होती हैं
एक तरफ,
किसी की पूरी जिंदगी...
और दूसरी तरफ,
तुम्हारा दो पल का मजा...
और चुन लेते हो तुम,
वो वहशीयत- भरा
दो पल का मजा...
और गिरा देते हो..
'जिंदगी की कीमत।'
(RIP अरुणा शानबाग को समर्पित)
Thursday 14 May 2020
याद रखना...
जिंदगी के सफ़र में
क़दम क़दम पर अलग-अलग फितरत
और नीयत के लोग मिलेंगे....
तुम चाहो या ना चाहो
वो हर रोज़ मिलेंगे...
तो तू आदत बना ले अपनी
अपने हर द्वंद्व.. हर डर..हर बैचेनी..के चौराहें से
हर बार अदम्य जिजीविषा को चुनने की... ।
मित्र के वेश में शत्रु हर राह पर मिलेंगे
मगर याद रखना..
अगर छोड़ दी तुमने.. खुद से यारी
तो शत्रु अपने सबसे बड़े तुम स्वयं ही बन बैठोगे...
तो याद रखना..
कि तुम ही सर्वश्रेष्ठ मित्र हो सकते हो खुद के
और मित्र की ही भांति सर्वश्रेष्ठ आलोचक भी...
तुम ही सबसे पहले
डरा कर चुप बिठा सकते हो खुद को
और तुम ही सबसे पहले
खड़े कर सकते हो खुद को.. साहस के साथ..।
अपने से प्रेम करना जिस दिन तुमने छोड़ दिया
किसी और से प्रेम पाने की उम्मीद, फिर ना करना..
याद रखना..
जिंदगी की किसी भी जिम्मेदारी से बड़ी है
तुम पर स्वयं की ही जिम्मेदारी...
तो हाथ सबसे पहले अपना ही थामना
ताकि फिर जिसका भी हाथ तुम थामों
वो भर उठे गर्व से.. तुम्हारे साथ से...।
नज़रें अपनी हमेशा अपनी फख्र से उठाना..
दुनिया की नजरों से.. खुद को कभी ना तोलना
वरना फिर कभी खुद को प्रेम न कर सकोगे...
अपने होने पर फ़ख्र न कर सकोगे...
दुनिया के बेहतरीन शख़्स से
फिर कभी न मिल सकोगे...
याद रखना..
ये सिर्फ़ तुम्हारी हानि न होगी..
संपूर्ण मानवता.. पूरी दुनिया को ये क्षति सौंप दोंगे तुम...
तो याद रखना...
खुद से प्रेम करना.. स्वयं के मित्र, स्वयं के आलोचक होना..
खुद की जिम्मेदारी लेना..
खुद को साहस से सींचना..
और खुद पर फ़ख्र करना..हर हाल में..
तो याद रखना......।
क़दम क़दम पर अलग-अलग फितरत
और नीयत के लोग मिलेंगे....
तुम चाहो या ना चाहो
वो हर रोज़ मिलेंगे...
तो तू आदत बना ले अपनी
अपने हर द्वंद्व.. हर डर..हर बैचेनी..के चौराहें से
हर बार अदम्य जिजीविषा को चुनने की... ।
मित्र के वेश में शत्रु हर राह पर मिलेंगे
मगर याद रखना..
अगर छोड़ दी तुमने.. खुद से यारी
तो शत्रु अपने सबसे बड़े तुम स्वयं ही बन बैठोगे...
तो याद रखना..
कि तुम ही सर्वश्रेष्ठ मित्र हो सकते हो खुद के
और मित्र की ही भांति सर्वश्रेष्ठ आलोचक भी...
तुम ही सबसे पहले
डरा कर चुप बिठा सकते हो खुद को
और तुम ही सबसे पहले
खड़े कर सकते हो खुद को.. साहस के साथ..।
अपने से प्रेम करना जिस दिन तुमने छोड़ दिया
किसी और से प्रेम पाने की उम्मीद, फिर ना करना..
याद रखना..
जिंदगी की किसी भी जिम्मेदारी से बड़ी है
तुम पर स्वयं की ही जिम्मेदारी...
तो हाथ सबसे पहले अपना ही थामना
ताकि फिर जिसका भी हाथ तुम थामों
वो भर उठे गर्व से.. तुम्हारे साथ से...।
नज़रें अपनी हमेशा अपनी फख्र से उठाना..
दुनिया की नजरों से.. खुद को कभी ना तोलना
वरना फिर कभी खुद को प्रेम न कर सकोगे...
अपने होने पर फ़ख्र न कर सकोगे...
दुनिया के बेहतरीन शख़्स से
फिर कभी न मिल सकोगे...
याद रखना..
ये सिर्फ़ तुम्हारी हानि न होगी..
संपूर्ण मानवता.. पूरी दुनिया को ये क्षति सौंप दोंगे तुम...
तो याद रखना...
खुद से प्रेम करना.. स्वयं के मित्र, स्वयं के आलोचक होना..
खुद की जिम्मेदारी लेना..
खुद को साहस से सींचना..
और खुद पर फ़ख्र करना..हर हाल में..
तो याद रखना......।
Sunday 10 May 2020
देर से ही सही...
देर से ही सही..
मगर अब जीना मैंने सीख लिया है....
जब जहां हूं मैं..
उसी पल.. उसी लम्हें में..
अब रहना मैंने सीख लिया है....
बहुत हो चुका भागना..
अतीत तो कभी.. भविष्य की गलियों में..
जीवन तो इसी पल.. इसी लम्हें में.. घटित होता है..
देर से ही सही..
मगर इस सत्य को मैंने जान लिया है....
जानना ही काफी नहीं होता है..
ये भी सही है..
जानकर.. खुद को रोक पाना वर्तमान में..
ये ही तो सबसे अहम होता है....
मगर जीना वर्तमान में..
बना सकते है आदत हम अपनी..
जानकर इसे.. आदत अपनी बना लिया है....
देर से ही सही..
मगर अपनी हर सांस को..
अब जीना मैंने सीख लिया है........।
मगर अब जीना मैंने सीख लिया है....
जब जहां हूं मैं..
उसी पल.. उसी लम्हें में..
अब रहना मैंने सीख लिया है....
बहुत हो चुका भागना..
अतीत तो कभी.. भविष्य की गलियों में..
जीवन तो इसी पल.. इसी लम्हें में.. घटित होता है..
देर से ही सही..
मगर इस सत्य को मैंने जान लिया है....
जानना ही काफी नहीं होता है..
ये भी सही है..
जानकर.. खुद को रोक पाना वर्तमान में..
ये ही तो सबसे अहम होता है....
मगर जीना वर्तमान में..
बना सकते है आदत हम अपनी..
जानकर इसे.. आदत अपनी बना लिया है....
देर से ही सही..
मगर अपनी हर सांस को..
अब जीना मैंने सीख लिया है........।
Thursday 7 May 2020
नि:शब्द...
नि:शब्द तुम..
नि:शब्द हम..
संवाद जारी है मगर....
राग सारे प्रेम के
छू रहे हैं अंतर्मन..
इक कश्ती पर सवार
बहे जा रहे है
रुख हवाओं के देखते से..
नि:शब्द तुम..
नि:शब्द हम..
संवाद जारी है मगर....।
नि:शब्द हम..
संवाद जारी है मगर....
राग सारे प्रेम के
छू रहे हैं अंतर्मन..
इक कश्ती पर सवार
बहे जा रहे है
रुख हवाओं के देखते से..
नि:शब्द तुम..
नि:शब्द हम..
संवाद जारी है मगर....।
Wednesday 6 May 2020
जिंदगी इन्द्रधनुष-सी हो जाए.. फिर से....
जिंदगी इन्द्रधनुष-सी हो जाए.. फिर से..
कि उड़े हवाओं में गुलाल फिर से...
बनके छुक-छुक रेल के डिब्बें,
दौड़ पड़े मैदानों में बच्चें फिर से..
ढूंढ़कर पेड़ों की सबसे मजबूत डालियां,
डाले जाए आंगन में झूलें फिर से..
मिल बैठे जब यारों के टोलें,
गूंज उठे ठहाकों से उनके चहूं दिशाएं फिर से..
घर की चौखट पर जो मेहमान आए,
दिल खोलकर की जाए मनुहार फिर से..
छुअन की वो मीठी-सी बोली,
पड़े हृदय के कानों में फिर से..
जिंदगी इन्द्रधनुष-सी हो जाए.. फिर से..
कि उड़े हवाओं में गुलाल फिर से......।
कि उड़े हवाओं में गुलाल फिर से...
बनके छुक-छुक रेल के डिब्बें,
दौड़ पड़े मैदानों में बच्चें फिर से..
ढूंढ़कर पेड़ों की सबसे मजबूत डालियां,
डाले जाए आंगन में झूलें फिर से..
मिल बैठे जब यारों के टोलें,
गूंज उठे ठहाकों से उनके चहूं दिशाएं फिर से..
घर की चौखट पर जो मेहमान आए,
दिल खोलकर की जाए मनुहार फिर से..
छुअन की वो मीठी-सी बोली,
पड़े हृदय के कानों में फिर से..
जिंदगी इन्द्रधनुष-सी हो जाए.. फिर से..
कि उड़े हवाओं में गुलाल फिर से......।
Monday 4 May 2020
तुम ही बता दो..
हर रोज़ अपनी नज़रों से
चुपके-से..
मेरी नजर उतारना तेरा....
हर बार...
तेरे मासूम से चेहरे का
मुड़ जाना मेरी तरफ
सूरजमुखी की तरहा.....
कैसे भूलूं.. तुम ही बता दो.....।
खनखनाती-सी तुम्हारी आवाज
जिसे सुनने को
खनखनाती-सी तुम्हारी आवाज
जिसे सुनने को
दिल हमेशा ही प्यासा बैठा हो...
रूह का हर कोना
जगमग कर जाती थी जो
वो जुगनुओं-सी
वो जुगनुओं-सी
चमकती तुम्हारी आंखें..
कैसे भूलूं.. तुम ही बता दो.....।
ज्यादा तो नहीं जानती
कैसे भूलूं.. तुम ही बता दो.....।
ज्यादा तो नहीं जानती
इश्क़ के बारे में
मगर तेरे साथ से
मगर तेरे साथ से
जो सुकूं रहा है जिंदगी में...
उस सुकूं और
उस सुकूं और
धड़कती हुई जिंदगी को..
कैसे भूलूं.. तुम ही बता दो.....।
कैसे भूलूं.. तुम ही बता दो.....।
Sunday 3 May 2020
इन दिनों (Lockdown)
जीवन की क्षणभंगुरता से
परिचय हो रहा है.. हर किसी का..
इन दिनों.....
घुटन भी खुद गुफ्तगू करती है
बैठकर सबसे..
इन दिनों.....
जायज़-सी लगती थी
जो रवानगी सांसों की..
कैद है वो चारदीवारी में..
इन दिनों.....
रखती है मगर आज भी..
उम्मीद और कोशिशें..
पहले-सा ही रुतबा अपना..
इन दिनों........।
इन दिनों.....
घुटन भी खुद गुफ्तगू करती है
बैठकर सबसे..
इन दिनों.....
जायज़-सी लगती थी
जो रवानगी सांसों की..
कैद है वो चारदीवारी में..
इन दिनों.....
रखती है मगर आज भी..
उम्मीद और कोशिशें..
पहले-सा ही रुतबा अपना..
इन दिनों........।
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