Saturday 30 October 2021

आकाश-सा वो.. और पतंग-सी मैं...

आकाश-सा वो
और पतंग-सी मैं....

कभी उसके पास जाके
खूब इठलाती-सी मैं..
तो कभी मुझे पास पाके
पहले से कुछ ज्यादा हसीन-सा वो....

कभी मेरी मौजूदगी से
कुछ ज्यादा ही रंगीन-सा वो..
तो कभी मेरी कमी से
कुछ बेरंग-सा वो....

कभी बदलती हवाओं के रुख के साथ
उसके कुछ करीब होती-सी मैं..
तो कभी हवाओं के बदलते रुख के साथ
मुझसे कुछ दूर होता-सा वो....

अपनी पूरी ताकत के साथ
उसे छूने की जिद में जैसे मैं
और अपने दामन में मुझे हमेशा के लिए छुपा के
अपना बनाने की चाहत में जैसें वो...

आकाश-सा वो
और पतंग-सी मैं....।



Friday 29 October 2021

मेरे इर्द-गिर्द

इक रोज मेरे ख़्वाब में

तू दबे पांव आया था.....

फिर मेरी गोद में सर रखकर

देर तक तू मुझे तकता रहा....

जहां एक हाथ से

मैं तेरा सर सहला रही थी

और दूजा तूने अपने हाथों में

थामा हुआ था....

तुम भी चुप थे

और मैं भी...

तुम्हारे और मेरे अंदर

हमारे इर्द-गिर्द

बाहर-भीतर

सब तरफ

एक रूहानी-खामोशी फैली हुई थी....

प्यार-भरी खामोशी..

सुकूं-भरी खामोशी..

फिर जब मेरी आंख खुली

तो वही सूकूं, वही प्यार, 

वही रूहानियत-भरी खामोशी..

ख्वाब से हकीकत तक उतर आई....

मेरे इर्द-गिर्द

बाहर-भीतर, सब तरफ फैल गई

बस..एक तुम नहीं थे वहां......

मगर तुम्हारे होने का एहसास वहीं था..

मेरे इर्द-गिर्द........।