और पतंग-सी मैं....
कभी उसके पास जाके
खूब इठलाती-सी मैं..
तो कभी मुझे पास पाके
पहले से कुछ ज्यादा हसीन-सा वो....
कभी मेरी मौजूदगी से
कुछ ज्यादा ही रंगीन-सा वो..
तो कभी मेरी कमी से
कुछ बेरंग-सा वो....
कभी बदलती हवाओं के रुख के साथ
उसके कुछ करीब होती-सी मैं..
तो कभी हवाओं के बदलते रुख के साथ
मुझसे कुछ दूर होता-सा वो....
अपनी पूरी ताकत के साथ
उसे छूने की जिद में जैसे मैं
और अपने दामन में मुझे हमेशा के लिए छुपा के
अपना बनाने की चाहत में जैसें वो...
आकाश-सा वो
और पतंग-सी मैं....।