Monday 7 February 2022

अमू


ओ मेरे प्यारे अमरूद के पेड़
जब से होश संभाला है
तुम्हारी छाया में रही
तेरी डालियों पर झूली..
मां जब चूल्हे पर रोटी बनाया करती थी
और वहीं पास बैठकर जब हम‌ खाना खाया करते थे
तब तेरी डालियों पर बैठी नन्हीं चिड़ियों का
डाल से उतर कर हमारे पास आ जाना
हमारा उन्हें रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े डालना 
और फिर से उनका तेरे दामन में सुकूं से जाकर बैठ जाना
सब हमारे सुनहरे बचपन की तस्वीरें है....

साफ-साफ याद है मुझे स्कूल के वो दिन
जब स्कूल से लौटते ही खिड़की में बस्ता रख 
हम सीधे तेरी डालियों पर चढ़ जाया करते थे 
और जब तक दो-चार अमरुद अंदर नहीं जाते
हम खाना तक नहीं खाते थे..

ठंडी हवाओं के साथ 
तेरी डालियों को पकड़कर 
जब झूमा करते थे 
तब भीतर का संगीत भी स्वत: ही फूट पड़ता था..
तेरे इर्द-गिर्द हंसते गाते वक्त कैसे गुजर जाता था 
पता ही नहीं चलता था...

मोहल्ले के हर घर की जीभ तक पहुंच थी तुम्हारी
और अड़ोस-पड़ोस के बच्चों के बचपन में तो
तुम आखिर तक रंग भरते रहे...

गर्मियों की उन शीतल रातों में
जब बाहर बिस्तर लगाकर सोया करते थे
तब तेरी पत्तियों की ओट से झांकते
चांद- तारों की वो रूमानियत-भरी महक
दिलों-दिमाग पर आज तक कब्जा किए हुए है...

तेरी शाखाएं न जाने कितने पक्षियों का रैन बसेरा रही
वो नन्हीं बया जिसने अपना घोंसला 
बहुत नीचे की डाल पर बना लिया था..
वहां से गुजरते वक्त कभी-कभी गलती से 
जब हम उसके घोंसले से टकरा जाया करते थे
तब वह बड़ी मासूमियत से देखा करती थी हमें
जैसे कह रही हो.. मैं भी रहती हूं यहां.. जरा देख कर चला करो
मगर कभी घोंसले से उड़ कर नहीं गई
शायद भरोसा था सुरक्षित है वो यहां..
टेलरबर्ड का घोंसला भी तो
पहली बार तुम्हारी ही डालियों पर देखा था और आखिरी बार भी...

बया का वो नन्हा-सा बच्चा याद है मुझे
जो तेरी ही डालियों पर बड़ा हुआ 
जब उसने उड़ना सीखा 
और छोड़कर घोंसले को खुले आसमां को नापने निकल गया था..
फिर भी महीने-भर तक रोज दोपहर
घंटे-भर का समय..रोज तेरी डालियों पर बिताने आया करता
शायद फिर से अपने बचपन को जीने आया करता था..

तुम सिर्फ एक पेड़ नहीं थे हमारे लिए
एक 'जीवंत व्यक्तित्व' थे..
जिसके इर्द-गिर्द हम बच्चे से बड़े हुए
पक्षियों के मनोविज्ञान को समझा
जीवन को समझा..
तुम और तुम्हारी यादें 
किसी अपने की तरह 
जिंदगी को आज भी सुकूं से आबाद करती है...।