Monday 29 June 2020

किसी चीज को नकारना
सिर्फ नकारना नहीं होता..
स्वीकारना होता है.. स्वयं के वजूद को....
हर बार हां में सर तो
सिर्फ कोई गुलाम ही हिला सकता है .....।
               
                                 

Sunday 28 June 2020

बोलो.. इतने झल्ले क्यूं हो तुम..

बोलो..
इतने झल्ले क्यूं हो तुम..
बस में चढ़ते ही लोग सीट ढूंढ़तें है.. 
और तुम हो कि.. 
मुझे ढूंढ़ते हो..
बोलो..
इतने झल्ले क्यूं हो तुम..
जब तक एक बार
नजरें मिल नहीं जाती हमारी... 
तब तक सुकूं
गायब-सा क्यूं रहता है तुम्हारा..
बोलो..
इतने झल्ले क्यूं हो तुम......।

Friday 26 June 2020

तेरा मिलके भी.. ना मिलना..
ज्यादा खलता है..तेरे ना मिलने से....।
            

Tuesday 23 June 2020

जाति और धर्म के नाम पर

जाति और धर्म के नाम पर
कितने ही योग्य लोगों को..
बांध दिया जाता है
अयोग्य लोगों के पल्लें...
और नष्ट हो जाती है एक दिन
उनके भीतर की सारी योग्यता..
उन अयोग्य साथियों के संग
सिर पचाते-पचाते..
जो कभी बहा करते थे
नदियों की तरह..
सूख जाती है.. 
उनके भीतर की नदी
और उसका कलनाद..
और बचते है तो बस
सूखी नदी के से अवशेष..
कितना भारी नुकसान करते है हम
देश और समाज का
जाति और धर्म के नाम पर....।




साथ की पूर्णता

दो अधूरी-सी रूहें
साथ में इस कदर पूरी-सी
कि रह नहीं सकती एक-दूजें से अलग..
और साथ की पूर्णता 
ना जाने किस तरह से..
भर देती है उनमें इतनी ताकत
कि लड़ जाते है वो पूरी दुनिया से..
एक-दूजें के साथ के लिए........।

Monday 22 June 2020

मोहब्बत

'छल' और 'कपट' से भरे लोग
कहाँ कर पाते हैं
किसी से भी 'मोहब्बत'....
क्योंकि चाहिए होती है
इसके लिए तो
"बच्चों-सी मासूमियत
और उनसा पाक-साफ दिल.......।"
                                       
वक्त के थपेड़ों में
भरभरायें मकान,
कब ढ़ह जाये..
कौन जानें.....?
                  

Sunday 21 June 2020

जायज़ प्रेम

दो लोगों के भीतर
जो प्रेम स्वत: उत्पन होता है..
उस जायज़ प्रेम को
नाजायज़ ठहरा देते है हम...
और दूसरी तरफ....
मजबूर कर देते है दो अजनबियों को 
जबरदस्ती एक दूसरे के प्रति
झूठा प्रेम प्रदर्शित करने को..
और ये जायज़.... 
नाजायज़ को जायज़
और जायज़ को नाजायज़
ठहराते आ रहे है हम..सदियों से....।

बोनसाई

एक आंगन में
दो पौधें उग आए..
एक को
बिना किसी रोक-टोक के
बढ़ने दिया गया..
और दूसरे की डालियां
बढ़ती भी नहीं थी
कि काट दी जाती थी..
एक विशाल वृक्ष बन गया
और दूसरा बोनसाई...
हम लड़कियों की तरह.....।

'रिश्तों की दुनिया'

रत्ती-भर भी फर्क नहीं पड़ता
'रिश्तों की दुनिया' में.. इस बात से....
कि उन्हें संवारनें.. उन्हें सम्भालनें..
या उन्हें बचाने के लिए
आप कहां तक गये....
आपने खुद को कहां तक झोंक दिया....
गर वाकई फर्क पड़ता है
यहां किसी बात से..
तो वो बस इतनी-सी है...
कि सामने वाले ने क्या सीखा था...
'कृतज्ञ' होना..
या फिर 'कृतघ्न'........।
                           
                                 

Friday 19 June 2020

छूकर कोई मुझे (बाल यौन-हिंसा पर कविता)

छूकर कोई मुझे
मुझसे ही दूर कर रहा है..
मेरे बचपन
मेरी मासूमियत को ही नहीं...
मेरे पूरे जीवन-उत्सव को ही कोई
बहुत वीरान कर रहा है.....
तुम सब को फुर्सत नहीं शायद 
ये देखने या समझने की..
कि कोई बच्चा क्यूं
आज-कल गुमसुम हो रहा है...
शायद व्यस्त रहते हो तुम
किन्हीं ज्यादा ज़रूरी बातों में...
कि किसकी बहू ने घूंघट किया
और किसकी ने नहीं..
या इतने नादान हो
कि दिखती ही नहीं उदासी
किसी मासूम की..
या इतने लापरवाह
कि फर्क ही नहीं पड़ता
किसी मासूम जिंदगी से...
या फिर समझते ही नहीं तुम
हमारे लिए अपनी कोई भी जिम्मेदारी...
शायद इसीलिए.. हर रोज कहीं ना कहीं
छूकर कोई मुझे
मुझसे ही दूर कर रहा है.....
मेरे बचपन
मेरी मासूमियत को ही नहीं...
मेरे पूरे जीवन-उत्सव को ही कोई
बहुत वीरान कर रहा है.....।

अंतहीन राहें

कुछ राहों की
मंजिलें नहीं होती...
बस.. राहें होती है
अंतहीन राहें.....।

Wednesday 17 June 2020

बॉडी शेमिंग

कौन आता है इस दुनिया में
अपने साथ..अपने ही लिए
'नकारात्मकता' लेकर...?
किसी ने कहा "इसका रंग देखो"
किसी ने कहा "ये कितना छोटा है"
किसी ने कहा "इसके बाल कितने अजीब है"
तो किसी ने कह दिया "ये कितनी मोटी है"
तो किसी ने ये कि "ये कितना पतला है"
सब कह कर चले गए मगर..
तुम्हें उनकी बातें बार-बार याद आती रही
और अपने ही लिए.. 'नकारात्मकता' से भरते गए तुम..

क्योंकि जिन्होंने कहा वो तुमसे बड़े थे..
तुम्हारा उन पर भरोसा था..
इसलिए उनकी बातें तुम्हें सच्ची लगी 
और तुम फंस गए...
फिर भर उठा तुम्हारा दिल अपने ही लिए.. नापसंदगी से..

आईने में जब भी खुद को देखा
तो किसी दिन कानों में पड़ी..
उन बातों का याद आ जाना 
तुम्हें खुद से थोड़ा और दूर कर गया...
फिर बार-बार शीशें में देखना
और नापसंद करना खुद को
आदत हो गई तुम्हारी...
मगर ये चल नहीं सकता ना
अपने ही लिए 'नकारात्मक' हो जाना तुम्हारा..

पहले खुद को नापसंद करना
फिर वापस पसंद करना 
इस लम्बी यात्रा में क्यों पड़ना?
जब कोई कहे कि "तुम सुंदर नहीं हो"
तो इसे अपने भीतर जाने ही मत देना 
क्यूंकि जो तुम हो.. बस वो हो..

फर्क नहीं पड़ेगा..
कि तुम्हारी काया.. तुम्हारे बालों का रंग क्या है..?
मगर फर्क पड़ेगा
तुम्हारे दिल में तुम्हारे लिए
'स्वीकार्यता' का रंग कितना है..

'बॉडी शेमिग' जिसकी भी वजह से
तुम्हारी लाइफ भी आईं हो..
कीमत सिर्फ तुम चुकाओगे
तो क्यों चुकानी?
बड़े हर बार सही ही बोलें.. ये जरूरी तो नहीं.. 
और जो तुम्हें खुद को भी नकारना सिखाएं
तुम खुद ही तय कर लेना.. उनकी समझ..
और उन पर अपना भरोसा..

तुम जैसे भी हो रंग-रूप में.. दिखने में..
बस हो..
जरूरत है सिर्फ खुद को स्वीकार करने की 
खुद को ये कहने की
कि "तुम दुनियां के सबसे प्यारे बच्चे हो" 
फिर खुद की इस 'स्वीकार्यता' के बाद
आइनें में तुम्हारे चेहरे..
तुम्हारी आंखों की चमक..
"तुम्हें खुद बता देगी.. कि तुम क्या हो"
और तुम्हारे साथ-साथ..बाकियों को भी....।

Monday 15 June 2020

गलतफहमियां

दरमियां किन्हीं दो अपनों के
ताउम्र के फासलें कर जाती है.. 
कुछ इस कदर..
गलतफहमियां सच को झूठ
और झूठ को सच कर जाती है....।

धरोहर

कुछ लोगों के साथ गुजारा हुआ
हर लम्हा...
जीवन में 'धरोहर' की तरह होता है,
जिसे सहेजकर रखना चाहते हैं हम
दिल के भीतर कहीं,
हमेशा के लिये.....।
                                                        

Sunday 14 June 2020



मनोविज्ञान कहता है कि "प्रत्येक आत्महत्या 'सामाजिक- हत्या' होती है... ये किसी भी समाज की भीतरी सड़न और खोखलेपन की और साफ-साफ इशारा करती है...।"
इस तरह आत्महत्या जैसें किसी शब्द का कोई अस्तित्व ही नहीं है...ये तो बस एक निर्दोष और दुनिया से जा चुके इंसान को कठघरे में खड़ा करके.. हम सबका खुद को बरी कर लेने को इज़ाद किया गया एक झूठा शब्द-भर है....( RIP सुशांत सिंह राजपूत को समर्पित)

कोशिशें

खोलती हैं,
नाकामियों से कामयाबियों के
कुछ अनजाने से रास्तें कोशिशें...
कर देती हैं,
खड़ा लाकर हमें
हमारी मंजिलों के सामने कोशिशें....।

बना देती हैैं,
हमारी पगडंडियों को
दुनिया के रास्तें, कोशिशें...
थमा देती हैं,
घनघोर अंधेरों में भी
एक छोर रोशनी का कोशिशें....।

भर देती हैं,
जिंदगी के दामन में
फिर से खुशियों के रंग, कोशिशें...
मिला देती हैं,
जो गर चाहो तो
खुद हमीं से हमें..कोशिशें......।

                               

Wednesday 10 June 2020

जुगनुओं से भरी रात से..

नज़रों में
ठहर जाने वाली..
जुगनुओं से भरी
रात से.....
तुम मुझसे
जब भी मिलें हो..
भर गए हो.....
मेरे अस्तित्व के
हर कोनें को..
'संपूर्णता' से....।

जिंदगी और हमारा सामाजिक ढांचा

हमारी ज़िंदगी हमारे चुनावों पर निर्भर करती हैं
और हमारे चुनाव,
हमारे सामर्थ्य पर...
हमारा सामर्थ्य हमारी परवरिश पर
और हमारी परवरिश,
हमारे सामाजिक ढांचें पर...
और हमारा सामाजिक ढांचा.......
मनोवैज्ञानिक रूप से इस कदर समृद्ध
जो देता है आधी आबादी को तो इतनी आज़ादी
कि वो उच्छृंखल हो जाये,
और आधी का.. इतना दमन
कि वो कुंठित हो जाये...
और जीवन ना तो उच्छृंखल में घटता है, ना कुंठित में
क्योंकि उच्छृंखलता सिर्फ विध्वंस मचाती है
और विध्वंस और जीवन तो इक- दूजे के विलोम ठहरे..
कुंठित में तो जीवन का सवाल ही कहां ?
तो फिर हमारे.. इस सभ्य सामाजिक ढांचे में
आखिर जीवन घटता कहां है?
                                 
                                      

Sunday 7 June 2020

इश्क़ हक़ीक़ी

इश्क़ मजाज़ी से
इश्क़ हक़ीक़ी तक के रास्तें ही
कहलाते है जिंदगी..
मगर समझ नहीं यहां
नादां‌ इसां को..
इश्क़ मजाज़ी तक की..
तो कहां समझे वो रूहानियत
इश्क़ हक़ीक़ी की...।

असीम संभावनाएं

हर वो बच्चा
जो इस दुनिया में आता है..
भरा होता है वो
असीम संभावनाओं से..
मगर सीमित कर देते हैं 
हम उन मासूमों ‌को..
ढ़ाल देते है उन्हें
एक निश्चित सांचे/ढांचे में..
और सीखा देते है उन्हें
श़क करना..
अपनी ही 'असीम संभावनाओं' पर...।

Saturday 6 June 2020

जिंदगी के भीतर मृत्यु

ना जिंदगी ..
ना मृत्यु..
जिंदगी के 
भीतर मृत्यु..
बस यही 
पीड़ा है...।

ख़ामोशी

ख़ामोशी भी सुनने का
जो शख़्स हुनर रखते हो..
अनसुने कर दिए जाते हो
जब उनके शब्द भी..
घटती है फिर जो खामोशी
जीवन के हर पहलू पर..
शब्दों के भी दायरे से
बाहर हो जाता है.. फिर..
बयां कर पाना उसे....।

मानव सभ्यता के किस छोर पर हम?

बंटा पड़ा है सम्पूर्ण विश्व,
स्त्री-पुरुष के खेमों में..
और पीछे,
कहीं बहुत पीछे......
छूट गए वो साथी,
गढ़ा था कुदरत ने जिन्हें....
एक-दूजे के सुकूं,
एक-दूजे के साथ के लिए....।
                               
                   

Friday 5 June 2020

जड़ता

चीजों को वैसे देखना
वैसे समझना.. वैसे महसूस करना
जैसी कि वो हैं..
जैसे कुदरत ने उन्हें बनाया है..
दूसरी तरफ समाज के चश्में..
उसके नज़रिए से देखना
दोनों में काफी फर्क होता हैं..
यही फर्क देखने की ताकत
हमें जड़ से चेतन करती है..
आंखें मूंदकर बिना सत्य को
तर्क की कसौटी पर कसे
स्वीकार कर लेना
क्योंकि वह चला आ रहा है.. बरसों से
जड़ता है......

एक लम्बी-चौड़ी फौज तैयार की जाती है
सामाजीकरण के नाम पर
जड़ बुद्धि लोगों की..
ताकि वो कभी खड़ें ना हो सके
व्यवस्था के ख़िलाफ़...
सामाजीकरण के नाम पर
इंसान सरीखे से..
रिमोट से संचालित लोग बनाए जाते है
जो ना तो अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते है
और ना अपनी मानवता का...
और जब अपनी प्रबल चेतना के बल पर
देख पाते है कुछ लोग
वो गहरा फर्क साफ-साफ..
जो कुदरत और सामाजीकरण के बीच
इतना गहरा हो चुका है
कि मनुष्य बिल्कुल भिन्न हो चुका है
अपने कुदरती रूप से..
तो खड़ी हो जाती है
पूरी व्यवस्था.. उन कुछ लोगों के ख़िलाफ़
जो जान चुके है मायने इंसान होने के.. चेतन होने के...
और विडम्बना.. कि ख़िलाफ़ उनके हम भी..।








रिश्तों को शब्दों से ज्यादा
खामोशियां मारती हैं
संवाद की खिड़कियां अगर मौजूद हो
तो बुरे से बुरे दौर में भी
रिश्तें फिर से महक उठते है।

मुखौटे

मुखौटे..
मनुष्य..
और उनका
जीवंत अभिनय....
आसां नहीं रहा
पहचान पाना अब..
इंसानों को...।

Wednesday 3 June 2020

उम्मीदें और शिकायतें

जो अपने होंगे
जिनके लिए
दिल में मोहब्बत होगी..
ज़ायज़ हैैं कि
उनसें कुछ उम्मीदें
तो कभी
कुछ शिकायतें भी होगी..
गर ख़त्म उम्मीदें...
गर ख़त्म शिकायतें...
तो समझ जाओ.. 
कि हो गई दफ़्न कहीं इस दिल में..
उम्मीदों और शिकायतों संग..मोहब्बत भी..।

                              

Monday 1 June 2020

कविता क्या है?

कविता..
अपने दर्द
अपने गुस्से
अपने आक्रोश
अपने भीतर की बैचेनी को
शब्द देना है.....

कविता..
रूह के सुकूं
रूह की खुशी
रूह के ख़ूबसूरत भावों
अपने भीतर के प्रेम को
शब्द देना है.....

कविता..
हृदय के गर्भ में
पल रहे मासूम शिशु को
शब्दों और
लेखनी के जरिए
जन्म देना है.....

कविता..
दर्द, खुशी
आक्रोश, प्रेम
रूह के हर एक भाव को..
एक ख़ूबसूरत
अभिव्यक्ति देना है....।

तेरे आगोश में

तेरे आगोश में
महफूज़-सी मैं...
मेरे दामन में
मासूम-बच्चे-सा तू...
तेरे इश्क़ में
अब मैं भी...
मेरे इश्क़ में 
अब तू भी...।