Sunday 13 November 2022

बिना उसकी जिंदगी जिए

फिंगरप्रिंट की तरह ही

कोई भी दो जिन्दगियों की कहानी

मैैच नहीं करती..

तो कैसे हम किसी और को

जज कर सकते हैं..

बिना उसकी जिंदगी जिए....।

Sunday 2 October 2022

बढ़ती उम्र के साथ

बढ़ती उम्र के साथ 
हम जजमेंटल कम.. 
और सेनसिबल 
अधिक हो जाते है...
जीवन को 
बिताना कम..
और जीना अधिक 
सीख जाते है...
अदब के नाम पर 
जीवन मे घुली
गुलामी से..
कुछ आजाद होना 
सीख जाते है...
हजारों बंदिशों की
गठरी की गांठों को...
हौले-हौले 
खोलना सीख जाते है....।


Monday 15 August 2022

सवाल

आज किसी ने पूछा उम्र क्या हो गई मैम आपकी 

जिसने पूछा उसे जन्मदिन से लेकर साल तक पता था..

कितना स्तरीय सवाल था ना....

ऐसे ही कुछ और स्तरीय सवाल पूछे गए..

तुम जैसे लोगों के दिमाग में 

कभी यह सवाल क्यों नहीं उठते कि

किस तरह रोक सकते हैं

मासूम बच्चों को यौन हिंसा से..

किस तरह दे सकते हैं किसी के जीवन को दिशा..

तुम्हारे ही घरों में तुम्हारे ही रिश्तेदार

तुम्हारे ही बच्चों का जीवन नोंच लेते हैं

तब तुम खामोश रहते हो..

उस बच्चे को भी चुप रहना सिखाते हो 

तब तुम सवाल नहीं करते

तब तुम खड़े नहीं होते 

क्योंकि तुम सब सभ्य समाज का हिस्सा जो ठहरे..

सामने सब ठीक लगना चाहिए

भीतर चाहे कोई खत्म हो जाए..

अपने शब्द.. अपनी उर्जा.. अपने जीवन को..

सही दिशा में लगाना सीखो

ताकि कुछ मायने हो तुम्हारे जीवन के....।




  

Wednesday 6 July 2022

किशोरावस्था

किशोरावस्था
जीवन की आधारशिला है...
और यौन परिपक्वता
अपराध नहीं 
विकास की प्रकिया है...
किशोरों को 
जीवन के जिस बेहद 
महत्वपूर्ण पड़ाव पर... 
हमारी सबसे ज्यादा 
जरूरत होती है... 
तब परिवार और समाज
उनका मार्गदर्शन करने की बजाय 
उन्हें जज करने बैठ जाता है...
और किशोर अकेले ही
इस दौर से जूझते रहते हैं...
किशोरावस्था निर्माण का समय है 
किशोरों के जीवन में नींव बनिए.. 
किशोरावस्था में किशोरों को 
तन्हा, खुद में ही उलझा हुआ 
और विध्वंसक बनने के लिए मत छोड़िए.....l

Monday 30 May 2022

पारस पत्थर

'पारस पत्थर'

बचपन में सुना था इसके बारे में..

पुरानी प्रचलित मान्यता है

कि जो कोई धातु इस पत्थर को छुआ दे

वो सोना हो जाए..

मगर इस पत्थर का

इस दुनिया में कहीं कोई अस्तित्व नहीं..

शायद प्रतीक है

ये उन लोगो का...

जिनके खुद के जीवन बड़े पथरीले-से रहे हैं..

मगर दूसरो की जिंदगियों को

सोने-सा उज्ज्वल बनाने की

योग्यता और सामर्थ्य वो पा चुके है...

क्योंकि गुजरे हैं वो

जीवन के पथरीले रास्तों से..

गहनतम दर्द,

गहनतम पीड़ा,

गहनतम आनंद से,

जीवन के हर गहनतम अनुभव से...

और बन गए हैं 'पारस पत्थर'....।

Thursday 19 May 2022

प्रकृति

फूलों के रंग
कहां फूलों तक रहते हैं..
बिखर जाते हैं
अपनी महक के साथ..
एक नजर ठहरकर 
दीदार कर लेने वाले के.. रुखसारों पर
महकते गुलाल की तरह......।

चांदनी आसमान में चांद की
सब तरफ फैली तो होती है..
मगर नहाता उसमें 
कोई-कोई शख़्स ही है.. 
रुककर दो पल सुकूं से निहारती है
जब कोई नजर चांद को..
तो साथ ही उतर आती है 
चांदनी भी भिगोने उसे..
और जब चांदनी में भीगकर 
चहकती है कोई रुह तो..
उस पल खिल उठता होगा चांद भी...
जैसे पानी में भीगते-चहकते 
अपने बच्चे को देखकर
खिल उठती है..कोई मां.....।

पत्तों से बिखरकर 
यूं तो हरियाली कहीं नहीं जाती..
मगर दिन-रात की दौड़ती-भागती जिंदगी 
ज्यों ही ठहर जाती है..
पेड़ों की लहराती शाखों के
मचलते पत्तों पर..
तो आंखों से‌ होकर हरियाली
दिल के मैदानों तक दौड़ जाती है...

Monday 9 May 2022

बसकर

दो साल पहले

'बसकन्या' नाम की बच्ची से मिली थी

और आज 'बसकर' से मिलना हुआ..

ये बच्चियां क्या बस करे

अब आप लोग बस कीजिए..

इन मासूम बच्चियों को 

इतने स्तरहीन नाम देना....

नाम किसी भी व्यक्ति की पहचान होती है

तो कुछ सुंदर और स्तरीय नाम दीजिए

अपनी विकृत मानसिकता को पीछे छोड़कर.....।

Saturday 7 May 2022

विटामिन-D

विटामिन-D उसके लिए नहीं है
खुले में वह अपने बाल नहीं सुखा सकती 
भले ही सर्दी-जुकाम उसे जकड़ ले....

ठिठुराती सर्दी में भी 
अगर वह छत पर जाकर धूप में अपने बाल सुखा आए
और किसी पड़ोसी की नजर उस पर पड़ जाए 
तो यह उसके स्वास्थ्य से ज्यादा 
उसके चरित्र का मुद्दा हो जाएगा....

चाहे उसके घुटनों के दर्द के लिए 
बताया हो डॉक्टर ने
थोड़ी देर तेल लगाकर धूप में बैठना..
लेकिन विटामिन-D उसके लिए नहीं है  
क्योंकि... वह किसी के घर की बहू है.....।

Saturday 16 April 2022

संग्राम

जीवन के मायने

वो लोग ज्यादा बेहतर समझते हैं

जो कर आए है आंखें चार मौत से..

दे आए है मात मौत को

थामने जिंदगी का दामन..

सही कहा है किसी ने...

कि "युद्ध से योद्धा वैसे कभी नहीं लौटते.. 

जैसे कि वो गए थे।"

संग्राम चाहे जीवन का हो या राष्ट्रों का

भीतर कुछ बदल ही जाता है....।


Monday 11 April 2022

क्षमा वीरस्य भूषणम्

क्षमा वीरों का आभूषण है

मगर ये क्षमा.. किसी और के लिए नहीं

बल्कि हमारे ही लिए होती है..

क्योंकि जब हम माफ कर पाते हैं 

तब हम शांत हो जाते हैं ...

जब नहीं कर पाते 

तब बेहद बेचैन

और विध्वंसक हो जाते हैं....

जीवन कुछ रच सकें

जीवन को उसके वास्तविक अर्थों में हम जी सकें

इसके लिए जरूरी है 

हमारे पास विध्वंसक नहीं 

रचनात्मक ऊर्जा हो....।


Tuesday 5 April 2022

स्वीकारना जो सीख लेते हो

कितना कम है

जीवन में चुनने के लिए..

और कितना अधिक है

जीने के लिए...

चुनने की स्वतंत्रता

हमें हर बार नहीं होती

लेकिन जीने की होती है...

क्योंकि समझ लो जीवन को

तो टकराना छोड़ देते हो...

जीवन को उसके सहज भाव से

स्वीकारना जो सीख लेते हो...।




Sunday 20 March 2022

नीम

तुम्हारी शाखाओं को काटा गया

नहीं..

तुम्हें जड़ से नष्ट किया गया...

बिछा दी गई टाइल्स

मंदिर के हर कोने में

मंदिर को भव्य बनाने के लिए...

उस रोज तुम्हारी ही छांव तले

करने को फैसला तुम्हारा

कुछ प्रबुद्ध जन बैठे थे...

और फैसला

तुम्हारे विपक्ष में आया था.....।














Monday 7 March 2022

राहों का चुनाव

कभी कभी हम नहीं 
राहें हमें चुनती हैं...
जैसें चुना था एक रोज़ उन्होंने
गौतम को...
और बना दिया था 'बुद्ध'
'महात्मा बुद्ध'...........।

Monday 7 February 2022

अमू


ओ मेरे प्यारे अमरूद के पेड़
जब से होश संभाला है
तुम्हारी छाया में रही
तेरी डालियों पर झूली..
मां जब चूल्हे पर रोटी बनाया करती थी
और वहीं पास बैठकर जब हम‌ खाना खाया करते थे
तब तेरी डालियों पर बैठी नन्हीं चिड़ियों का
डाल से उतर कर हमारे पास आ जाना
हमारा उन्हें रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े डालना 
और फिर से उनका तेरे दामन में सुकूं से जाकर बैठ जाना
सब हमारे सुनहरे बचपन की तस्वीरें है....

साफ-साफ याद है मुझे स्कूल के वो दिन
जब स्कूल से लौटते ही खिड़की में बस्ता रख 
हम सीधे तेरी डालियों पर चढ़ जाया करते थे 
और जब तक दो-चार अमरुद अंदर नहीं जाते
हम खाना तक नहीं खाते थे..

ठंडी हवाओं के साथ 
तेरी डालियों को पकड़कर 
जब झूमा करते थे 
तब भीतर का संगीत भी स्वत: ही फूट पड़ता था..
तेरे इर्द-गिर्द हंसते गाते वक्त कैसे गुजर जाता था 
पता ही नहीं चलता था...

मोहल्ले के हर घर की जीभ तक पहुंच थी तुम्हारी
और अड़ोस-पड़ोस के बच्चों के बचपन में तो
तुम आखिर तक रंग भरते रहे...

गर्मियों की उन शीतल रातों में
जब बाहर बिस्तर लगाकर सोया करते थे
तब तेरी पत्तियों की ओट से झांकते
चांद- तारों की वो रूमानियत-भरी महक
दिलों-दिमाग पर आज तक कब्जा किए हुए है...

तेरी शाखाएं न जाने कितने पक्षियों का रैन बसेरा रही
वो नन्हीं बया जिसने अपना घोंसला 
बहुत नीचे की डाल पर बना लिया था..
वहां से गुजरते वक्त कभी-कभी गलती से 
जब हम उसके घोंसले से टकरा जाया करते थे
तब वह बड़ी मासूमियत से देखा करती थी हमें
जैसे कह रही हो.. मैं भी रहती हूं यहां.. जरा देख कर चला करो
मगर कभी घोंसले से उड़ कर नहीं गई
शायद भरोसा था सुरक्षित है वो यहां..
टेलरबर्ड का घोंसला भी तो
पहली बार तुम्हारी ही डालियों पर देखा था और आखिरी बार भी...

बया का वो नन्हा-सा बच्चा याद है मुझे
जो तेरी ही डालियों पर बड़ा हुआ 
जब उसने उड़ना सीखा 
और छोड़कर घोंसले को खुले आसमां को नापने निकल गया था..
फिर भी महीने-भर तक रोज दोपहर
घंटे-भर का समय..रोज तेरी डालियों पर बिताने आया करता
शायद फिर से अपने बचपन को जीने आया करता था..

तुम सिर्फ एक पेड़ नहीं थे हमारे लिए
एक 'जीवंत व्यक्तित्व' थे..
जिसके इर्द-गिर्द हम बच्चे से बड़े हुए
पक्षियों के मनोविज्ञान को समझा
जीवन को समझा..
तुम और तुम्हारी यादें 
किसी अपने की तरह 
जिंदगी को आज भी सुकूं से आबाद करती है...।


Wednesday 26 January 2022

वक्त के आईने में
दिख ही जाता है अक्स
अपने-परायों का......

औरतें अक्सर

कुदरत के हिसाब से जीते-जीते
पता ही नहीं चला
कब लाखों दुश्मन बना बैठी मैं
क्यूंकि उन लाखों समाज के ठकेदारों के
उस सभ्य ढांचे में फिट नहीं होती थी मैं..
अगर अपनी हर सांस का भी हिसाब मैं उन्हें देती
उनकी बनाईं हर जंजीर
हर बंधन को
मैं सर झुकाकर मान लेती
भूल जाती कि मुझमें भी सांसें चलती है..
जिंदगी धड़कती है..
और बन जाती उनके इशारों पर चलने वाली
रोबोट सरीखी-सी मशीन
तो सभ्य कहलाती मैं...
मगर विडम्बना कि कुदरत ही रह गई मैं....
और उस ढांचे के किसी काम की नहीं रही मैं
और बहुत देर से समझ पाई
कि औरत अगर एक लम्हा भी अपने लिए चाह लेती है 
तो स्वार्थी, खुदगर्ज और मतलबी समझी जाती है..
और जो हमेशा इस्तेमाल करते है हमारा हर रिश्ते में 
उस सभ्य समाज के लिए बेकार हो जाती है.. 
इसलिए चाहे बाहर से तन्हा रहे 
या फिर भीतर से 
मगर औरतें अक्सर
तन्हा ही रह जाती है...।

रास्तों की ख़ूबसूरती

तुम सबको दिखाने के लिए
कोई शानदार मंजिल नहीं है मेरे पास
शायद इसीलिए जीवन खाली लगे तुम्हें मेरा...
मगर मंजिल नहीं
रास्तों की ख़ूबसूरती को जिया है मैंने..
बाहर से भरी-भरी
जिंदगियों की रिक्तता को करीब से देखा है
और रीती-रीती जिंदगियों की पूर्णता को भी....।

Friday 21 January 2022

रोड लाइट-सी लड़की

लगता है जैसे तू और मैं

एक ही लड़की के इश्क़ में है

जिसने खो दिया है

दुनिया की भीड़ में खुद को...

उससे फिर से मिलना चाहती हूं मैं 

और शायद तू भी... 

उस नटखट-सी

अपनों की परवाह करने वाली..

छोटी-छोटी चीजों में

खुशी ढूंढ लेने वाली लड़की से 

मेरी तरह.. तुझे भी इश्क़ है शायद...

मगर पता नहीं

उसकी मासूमियत

उसकी बेफ़िक्री  

फिर से लौट पाएंगी या नहीं...

वो सुनसान अंधेरे रास्तों पर

पथ-प्रदर्शक बनी

'रोड लाइट-सी लड़की'

हम दोनों को मिल पाएंगी या नहीं.. ।