Monday 28 September 2020
Thursday 24 September 2020
पर्दा
मातृत्व मोहताज नहीं कोख का
हां मगर मोहताज है वो यहां
तुम्हारी सोच का...
तुम समझते हो.. जो जाया हो कोख का
वही कुलदीपक हो सकता है.. तुम्हारे वंश का..
स्त्री जो तुम्हारेेे सामने जिंदा खड़ी थी
उसका होना नगण्य
और बच्चें का ना होना.. सर्वस्व...कर दिया गया...
उसका सच नंगा खड़ा था
इसलिए जमाने के सामने.. ढिंढोरा पीट आए तुम
उसे छोड़ किसी और को ले आए तुम..
मगर बात जब तुम्हारी आई
तो छुपाना तुम्हें उचित लगा..
सरेआम तमाशा बने तुम्हारा
ये सोचकर ही सिहर गए तुम..
और निकाल लिया तुमने बीच का रास्ता
भेज दिया गया उसे.. अपनी झूठी इज्जत बचाने को
कभी किसी घर में देवर.. कहीं जेठ...
कहीं किसी दोस्त तो कभी किसी बाबा के पास..
बेपर्दा पुरुषों का इतिहास पर्दों में रहा यहां
और पर्देदार स्त्रियां..हमेशा बेपर्दा रही यहां......।
Thursday 17 September 2020
मृत रूहें
जीते कहां हैं हम
हमें तो रोज मरने की
कला सिखाई जाती है..
मौत बेचारी तो
बड़ा उपकार करती है
हम 'मृत रूहों' पर..
कि आजाद कर देती है हमें
'ज़िस्मों की कैद' से...।
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