Monday 27 July 2020

रेगिस्तान से ये समाज

रेगिस्तान से ये समाज
यहां गुलाब नहीं महका करते... 
ये सरज़मीं तो बस
कैक्टसों के लिए ही अनुकूल है.....।

Friday 24 July 2020

हम ना हो

चाहें बन ना सके
किसी की मुस्कुराहटों की वजह हम..
मगर सीने में किसी के
दर्द की वजह.. हम ना हो.....

आंखों में किसी के
नूर की वजह हम हो ना हो...
मगर मासूम किन्हीं आंखों से
छलकते दर्द की वजह.. हम ना हो....

गुजर जाएं हमारे साथ से
किसी का वक़्त पल-भर में 
ऐसे किसी के साथी हम हो ना हो..
मगर ठहर जाए किसी का वक़्त, बरसों वहीं..
ऐसे किन्हीं गुनाहों की वजह.. हम ना हो....

Thursday 23 July 2020

स्त्री

स्त्री....
असम्भव से सम्भव की यात्रा को
परिभाषित करता एक शब्द..
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद....।
                                        

Tuesday 21 July 2020

कूँची

कहाँ बदलता है
कुछ भी खुद-ब-खुद
ये हमी तो हैं
जो भर के मन की ताकत से
उठातें हैं जब हाथ अपनें..
तो बदल जाती है तस्वीर दुनिया की
पलट जाते हैं तख़्त बादशाहों तक के....
सही भी है
गर बिना कूँची उठायें
तस्वीर में रंगों के भर जाने का इंतजार हम करते रहें
तो तस्वीर हमेशा के लिए बेरंग ही रह जायेंगी
और जो गर उठा ली कूँची हमनें....
तो फिर तस्वीर का हर रंग
हमारें मनमाफिक होगा............।
                               

Sunday 19 July 2020

मेरा आकाश

खुदा हौसलों की उड़ान
मुझ बेपर इंसान में भर दे..
ताकि उड़ सकूूं
दूर कहीं आकाश में..
छू सकूं
अपने सपनों के आकाश को..
और भर सकूं
उसे अपनी बाँहों में..........।
                          

Friday 17 July 2020

जिंदगी

साँसें आती जाती है
दिल भी धड़कता है..
बह रहा है,
इन रगों में लहू भी...
जीने के सभी इशारें मौजूद है,
बस, हम जिंदा ही नहीं...........।
                                    

Thursday 9 July 2020

बसकन्या

आज एक बच्ची से मिलना हुआ
नाम था 'बसकन्या'...
मुझे सुनाई पड़ा 'विषकन्या'
तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ..
कि कोई अपनी बच्ची का नाम
'विषकन्या' कैसे रख सकता है भला..
मैंने फिर से पूछा...
तो बच्ची ने कहा
नहीं.. 'बसकन्या'...
अब मैं क्या कहूं आगे
भारतीय समाज के पुत्र-मोह की 
जिंदा निशानी-सी 'बसकन्या'
आपके सामने है.....
और वक़्त के साथ वो बच्ची 
हजारों सवालों से जूझने के लिए छोड़ दी जाएगी
कि " मेरे अस्तित्व से भी एतराज था
मेरे ही अपने परिवार और समाज को.."
बड़ा तन्हा महसूस करेगी उस वक़्त खुद को..
तुम सब समझ भी नहीं सकते हो
की तुमने उसे 'बसकन्या' नाम ही नहीं
'एक लम्बी मानसिक लड़ाई' सौंप दी है..
 तुम्हारी सभ्य सोच के साथ.....।

Wednesday 8 July 2020

तुम्हारे(अपरिपक्व) सवालों पर...

जवाब तो तुम्हारे हर एक सवाल का दे सकती हूं मैं
मगर क्या रखते हो तुम भी उसी स्तर की परिपक्वता
जिस स्तर की समझ के साथ देखा है मैंने जीवन को...
जिस खुले दिमाग से देखने के बाद
जाना है मैंने जिंदगी को..
समझा है उसके मायनों को..
शायद नहीं...
क्योंकि तुम तो अभी ये तक नहीं समझ पाए
कि मनुष्य जाति स्त्री और पुरूष दोनों के होने से है
मगर एक को तो कोख में भी जगह देने से एतराज है तुम्हें..
तो क्या समझोगे मायने तुम जीवन के....
तुम सब लकीर के फकीर जो ठहरे..
कुदरत ने हम सबको अपना अलग दिमाग दिया
मगर तुम कभी भी सम्मान कर पाए कुदरत का..
नहीं ना..
अगर भेड़ चाल ही होती जीवन के लिए सही
तो कुछ ही बंदों को ना दिया होता कुदरत ने दिमाग ?
मगर तुम हो कि जंग लगा उसे शान से बैठे हो..
इसलिए अक्सर खामोश रहती हूं मैं तुहारे सवालों पर...
क्योंकि..
"परिपक्व जवाबों को अपरिपक्व समझ के साथ, तुम पचा न सकोगे..."
क्योंकि अभी ना जाने और कितना वक्त लोगे तुम सब
जीवन को उसके मायनों के साथ स्वीकारने में....
इसलिए अक्सर खामोश रहती हूं मैं
तुम्हारे (अपरिपक्व) सवालों पर.......।