आज एक बच्ची से मिलना हुआ
नाम था 'बसकन्या'...
मुझे सुनाई पड़ा 'विषकन्या'
तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ..
कि कोई अपनी बच्ची का नाम
'विषकन्या' कैसे रख सकता है भला..
मैंने फिर से पूछा...
तो बच्ची ने कहा
नहीं.. 'बसकन्या'...
अब मैं क्या कहूं आगे
भारतीय समाज के पुत्र-मोह की
जिंदा निशानी-सी 'बसकन्या'
आपके सामने है.....
और वक़्त के साथ वो बच्ची
हजारों सवालों से जूझने के लिए छोड़ दी जाएगी
कि " मेरे अस्तित्व से भी एतराज था
मेरे ही अपने परिवार और समाज को.."
बड़ा तन्हा महसूस करेगी उस वक़्त खुद को..
तुम सब समझ भी नहीं सकते हो
की तुमने उसे 'बसकन्या' नाम ही नहीं
'एक लम्बी मानसिक लड़ाई' सौंप दी है..
तुम्हारी सभ्य सोच के साथ.....।