घनीभूत पीड़ा का
उर्मिला-सा बिछोह..
अब रोम-रोम दौड़ता है
आंखों में उतरकर दर्द अब
बार-बार बोलता है.....
पीड़ा का प्रत्यक्ष
प्रमाण-सा मेरा जीवन..
अब रिस-रिस कर रीतता है
होठों की खामोशी में दर्द अब
बार-बार बोलता है.....।
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